भारत को फिलिस्तीन मुद्दे पर नेतृत्व करना चाहिए: खरगे

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

गाजा में तबाही और भुखमरी पर चुप्पी असामान्य और अस्वीकार्य है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि भारत को फिलिस्तीन के मुद्दे पर नेतृत्व दिखाना चाहिए। उन्होंने केंद्र सरकार की चुप्पी को मानवता और नैतिकता का त्याग बताया। खरगे ने कहा कि सोनिया गांधी ने स्पष्ट किया है कि भारत को इस मुद्दे पर नेतृत्व करना चाहिए। मोदी सरकार की प्रतिक्रिया मानवीय संकट पर चुप्पी और मानवता व नैतिकता का त्याग रही है। यह रवैया प्रधानमंत्री मोदी और इजरायली प्रधानमंत्री की मित्रता से प्रेरित लगता है, न कि भारत के संवैधानिक मूल्यों से।

व्यक्तिगत कूटनीति भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शन नहीं कर सकती। भारत को फिलिस्तीन के मुद्दे को नैतिक और सभ्यतागत परीक्षा के रूप में देखना चाहिए। प्रियंका गांधी वाड्रा ने लिखा कि भारत का ऐतिहासिक अनुभव और मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता उसे न्याय के पक्ष में बोलने के लिए सक्षम बनाती है। उन्होंने कहा कि इस संघर्ष में किसी एक पक्ष को चुनने की अपेक्षा नहीं है, बल्कि नेतृत्व से अपेक्षा है कि वह सिद्धांत आधारित हो। सोनिया गांधी ने अपने लेख में भारत की चुप्पी और फिलिस्तीन के प्रति उदासीनता को चिंताजनक बताया।

भारत ने 1988 में फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता दी थी और लंबे समय तक उसके अधिकारों का समर्थन किया। भारत का इतिहास रंगभेद, अल्जीरिया की स्वतंत्रता, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे मुद्दों पर नैतिक नेतृत्व का गवाह रहा है। संविधान में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को राज्य नीति का हिस्सा माना गया है। भारत ने पहले पीएलओ को मान्यता दी, दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन किया और संतुलित नीति अपनाई। फिलिस्तीन को मानवीय और विकास सहायता भी दी गई, लेकिन अक्टूबर 2023 के बाद जब इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष तेज हुआ, तब भारत की भूमिका लगभग समाप्त हो गई।

गाजा की तबाही और भुखमरी पर भारत की चुप्पी असामान्य और अस्वीकार्य है। सोनिया गांधी ने कहा कि भारत सरकार का रवैया इजरायली प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री मोदी की मित्रता से प्रेरित है। यह व्यक्तिगत कूटनीति टिकाऊ नहीं है और विदेश नीति का मार्गदर्शक सिद्धांत नहीं हो सकती। फिलिस्तीन का मुद्दा भारत की विदेश नीति से आगे बढ़कर उसकी नैतिक और सभ्यतागत विरासत की परीक्षा है। फिलिस्तीनी जनता का संघर्ष भारत की पीड़ा का प्रतिबिंब है।

उन्होंने जोर दिया कि भारत को अपने ऐतिहासिक अनुभव और नैतिक जिम्मेदारी के आधार पर न्याय, मानवाधिकार और शांति के पक्ष में बिना देरी और हिचकिचाहट के आवाज उठानी चाहिए।

Share This Article