जयपुर। आरयू के राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम से इस वर्ष महात्मा ज्योतिबा फुले के अध्याय को हटा दिया गया है। विद्यार्थी अब उनके संघर्ष, सत्यशोधक समाज की स्थापना कर जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक विषमताओं को दूर करने की उनकी कोशिश को नहीं पढ़ पाएंगे। विश्वविद्यालय के सत्र 2023-24 और 2024-25 में इण्डियन पॉलिटिकल थॉट में ज्योतिबा फुले पढ़ाए जा रहे थे, लेकिन वर्ष 2025-26 के नए सत्र में उनके विचारों को विलोपित कर दिया गया। इस कदम से छात्र-छात्राओं और सामाजिक संगठनों में रोष है।
आरयू के शोध के विद्यार्थियों ने कुलगुरु को ज्ञापन देकर पुन: पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की है। फुले को डॉ. अम्बेडकर ने अपना गुरु बताया था। उन्होंने लिखा कि ज्योतिबा फुले के जीवन से उन्हें प्रेरणा मिली। इसी का परिणाम रहा कि वे विषमताओं के खिलाफ संघर्ष कर पाए। 19वीं सदी के इस महान समाज सुधारक और शिक्षाविद के योगदान को पाठ्यक्रम से हटाना भविष्य की पीढ़ी को उनके विचारों और संघर्ष से दूर करने जैसा है। फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किए।
सावित्रीबाई को देश की पहली महिला शिक्षिका बनने का श्रेय जाता है। हमने कुलगुरु को ज्ञापन देकर वापस अध्याय जोड़ने का आग्रह किया है। डॉ. सज्जन कुमार सैनी, पोस्ट डॉक्टर रिसर्च फैलो, आरयू यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा-आरएसएस की सरकारें पाठ्यक्रमों से महात्मा ज्योतिबा फुले के पाठ्यक्रम को हटा रही हैं। आरयू ने पाठ्यक्रम से उनके अध्याय को हटाया है तो उसे वापस जोड़ा जाना चाहिए। भारत का वंचित समाज इसे सहन नहीं करेगा कि उनके आइकोन को हटाया जाए।
-राजेन्द्र सैन, राष्ट्रीय समन्वयक, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ओबीसी विभाग, जयपुर उन्होंने जातिप्रथा का विरोध और शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कही थी, लेकिन जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, वहां पर इस तरह का कार्य किया जा रहा है। जिन लोगों ने समाज को बदलने का कार्य किया है, उनके अध्याय को हटाना बहुत ही दुखद है। उनकी पुस्तक गुलामगिरी समाज को बदलने का बड़ा माध्यम है।-प्रो.राजीव गुप्ता, प्रख्यात समाजशास्त्री, जयपुर


