मार्गशीर्ष का महीना चल रहा है, जिसे हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। यह कृष्ण जी के प्रिय महीनों में से एक है। अगहन मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती के रूप में मनाया जाता है। अष्टमी तिथि की शुरुआत 11:08 मिनट पर होगी और इसका समापन 12 नवंबर को 10:58 पर होगा। इस दिन दो शुभ योग बन रहे हैं। 8:02 से शुक्ल योग और इसके बाद ब्रह्म योग का निर्माण होगा। काल भैरव को भगवान शिव का रूप माना जाता है।
इस दिन विधिवत पूजन करने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। पूजा का शुभ मुहूर्त जान लेते हैं। काल भैरव जयंती पर पूजन का समय ब्रह्म मुहूर्त में 4:56 से 5:49 मिनट है। विजय मुहूर्त दोपहर 1:53 से 2:36 बजे तक रहेगा। गोधूलि मुहूर्त 5:29 से 5:55 तक और संध्या का समय 5:29 से 6:48 तक रहेगा। अमृत काल 4:58 से 6:35 तक रहेगा। निशिता मूर्ति 11:39 से रात 12:32 तक रहेगी। पूजन के लिए सुबह स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें। भगवान काल भैरव की प्रतिमा या चित्र को चौकी पर स्थापित करें।
भगवान को तिल, सरसों का तेल और काला तिल अर्पित करें। काल भैरव अष्टक का पाठ करें, फिर भगवान को फलों का भोग लगाकर आरती करें और भूल चूक के लिए क्षमा मांगे। इस दिन जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र का दान देना न भूलें। उपवास के साथ काले कुत्ते को भोजन भी दें। जो व्यक्ति भगवान काल भैरव की पूजा करता है, उसे चमत्कारी परिणाम मिलते हैं। इस पूजा से शत्रुओं पर विजय, नकारात्मकता का दूर होना, मानसिक शांति और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यदि आप जीवन में सकारात्मकता लाना चाहते हैं तो पूजा, पाठ, उपवास और दान अवश्य करें।


