कर्नाटक : जातिगत जनगणना रिपोर्ट धूल फांक रही, राजनेता इसके नतीजों से डर रहे

Sabal Singh Bhati
5 Min Read

बेंगलुरू, 12 फरवरी ()। कर्नाटक जाति जनगणना की रिपोर्ट को राजनीति के चलते गुप्त रखा गया है। रिपोर्ट के लीक हुए निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय दलितों और मुसलमानों से अधिक की संख्या में है।

इस सनसनीखेज खबर के बाद राज्य में बड़ा विवाद शुरू हो गया है। लिंगायत और वोक्कालिगा जिन्होंने केवल संख्या के आधार पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन्हें राजनीतिक रूप से प्रासंगिक नहीं होने की चुनौती का सामना करना पड़ा।

कर्नाटक की राजनीति में जाति संत, वशेष रूप से लिंगायत, वोक्कालिगा और कुरुबा समुदाय चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कर्नाटक में सिद्दारमैया सरकार के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 2014 में सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण का आदेश दिया था। सिद्दारमैया सरकार ने कहा कि निष्कर्ष अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आरक्षण और कोटा पर निर्णय लेने में सक्षम होंगे।

कर्नाटक में 1.6 करोड़ घरों का सर्वेक्षण करने का विशाल कार्य पूरा किया गया। राज्य भर में 1.6 लाख कर्मी घर-घर गए और इस कार्य को पूरा करने के लिए सरकार ने 169 करोड़ रुपये खर्च किए। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को काम को डिजिटाइज करने का काम दिया गया था।

कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एच. कंथाराज ने सर्वेक्षण की निगरानी की। रिपोर्ट कैबिनेट के सामने पेश नहीं की गई और सूत्रों का कहना है कि यह आयोग के सदस्य सचिव के पास पड़ी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, कंथाराज का कार्यकाल साल 2019 में समाप्त हो गया और वर्तमान में आयोग के अध्यक्ष जयप्रकाश हेगड़े हैं।

अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि तीनों राजनीतिक दलों के लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों से जुड़े राजनेता इस रिपोर्ट को दबाना चाहते हैं। 1935 के बाद देश में पहली बार सर्वेक्षण कराने वाले सिद्दारमैया रिपोर्ट के निष्कर्षों को स्वीकार और प्रकट नहीं कर पाए।

सिद्दारमैया के बाद, उनके उत्तराधिकारी एचडी कुमारस्वामी सत्ता में आए और गठबंधन सरकार ने इस मुद्दे पर गौर करने की जहमत नहीं उठाई। भाजपा के सत्ता में आने पर कांग्रेस नेताओं ने जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों को सार्वजनिक करने की जोरदार मांग शुरू कर दी।

विपक्ष के नेता सिद्दारमैया ने भाजपा पर जातिगत जनगणना को सार्वजनिक करने का आरोप लगाया और चुनौती दी। उन्होंने कुमारस्वामी पर भी हमला बोला। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और कुमारस्वामी ने सिद्दारमैया को फटकार लगाई कि उन्होंने काम क्यों नहीं किया। सिद्दारमैया ने बदले में उनसे सवाल किया कि वह स्वीकार करते हैं कि वह रिपोर्ट जारी नहीं कर सके और खुद रुचि क्यों नहीं ले रहे हैं?

इस मुद्दे पर कुछ महीनों तक बहस जारी रही। जैसा कि राज्य दो महीने से भी कम समय में आम विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है, सभी राजनीतिक दल जातिगत जनगणना पर चुप्पी साधे हुए है। सूत्रों का कहना है कि कोई भी राज्य में किसी भी समुदाय, विशेष रूप से लिंगायत और वोक्कालिगा को नाराज नहीं करना चाहता। समाज कल्याण मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी ने कहा कि गेंद पिछड़ा आयोग के पाले में है। उसे पहले रिपोर्ट देनी होगी और फिर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार इस पर फैसला ले सकती है।

आयोग के पूर्व अध्यक्ष सीएस द्वारकानाथ कई बार मांग कर चुके हैं कि चूंकि जातिगत जनगणना पर 168 करोड़ रुपये की बड़ी राशि खर्च की जा चुकी है, इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए। सिद्दारमैया ने सत्तारूढ़ भाजपा पर आरोप लगाया कि वह जानबूझकर रिपोर्ट को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। भाजपा का कहना है कि राजनीतिक फायदा लेने के लिए इस मुद्दे को उठाया जा रहा है।

कर्नाटक जैसे प्रगतिशील राज्यों में जातिगत जनगणना को लेकर राजनीति पेचीदा है। प्रगतिशील विचारकों और राजनीतिक विशेषज्ञों का मत है कि राजकोष को 168 करोड़ रुपये खर्च करने वाला सरकारी कार्यक्रम राजनीति का शिकार हो रहा है।

एफजेड/

देश विदेश की तमाम बड़ी खबरों के लिए निहारिका टाइम्स को फॉलो करें। हमें फेसबुक पर लाइक करें और ट्विटर पर फॉलो करें। ताजा खबरों के लिए हमेशा निहारिका टाइम्स पर जाएं।

Share This Article
Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times