कर्नाटक सरकार को झटका देते हुए हाईकोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों के उपयोग पर जारी विवादास्पद आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि यह सरकारी आदेश (जीओ) संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की धारवाड़ बेंच ने आदेश को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया और सरकार को याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 17 नवंबर को होगी।
18 अक्टूबर को जारी इस सरकारी आदेश में पार्क, खेल मैदान, सड़क और सरकारी संपत्ति पर 10 से अधिक लोगों के एकत्र होने पर पूर्व अनुमति अनिवार्य की गई थी। बिना अनुमति के ऐसा करना गैरकानूनी सभा माना जाता और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत दंडनीय होता। सरकार ने इसे सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण रोकने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने का उपाय बताया था।
कोर्ट ने फैसले में क्या कहा हुबली की एनजीओ पुनश्चेतना सेवा संस्था की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक पुलिस अधिनियम में पहले से ही सार्वजनिक आयोजनों को नियंत्रित करने का प्रावधान है। सेक्शन 31 पुलिस को रैलियों और सभाओं पर नियंत्रण का अधिकार देता है। वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक हरनहल्ली ने तर्क दिया कि पार्क में दोस्तों के साथ टहलना या हंसी क्लब की गतिविधि भी अब गैरकानूनी कैसे हो सकती है?
मौलिक अधिकारों का हनन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और (बी) के तहत मिले अभिव्यक्ति और सभा की स्वतंत्रता को केवल कानून द्वारा ही सीमित किया जा सकता है, न कि कार्यकारी आदेश से। अनुच्छेद 13(2) का उल्लंघन करते हुए यह आदेश मौलिक अधिकारों का हनन करता है। जज ने टिप्पणी की कि सरकार शायद कुछ और हासिल करने की कोशिश कर रही थी।

