स्वास्थ्य के लिए क्यों जरूरी है योगासन? जानें

Kheem Singh Bhati
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स्वास्थ्य के लिए क्यों जरूरी है योगासन?: स्वास्थ्य विशेषज्ञ डा० एम० गुल्लर ने एक स्थान पर लिखा है- “वैज्ञानिक परीक्षा द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि मांसपेशियों की झिल्ली व शरीर की नसों में एक प्रकार का पीलापन लिए हुए मल जमा होता रहता है। इस मल का अधिकांश पृथ्वी तत्त्व से सम्बन्ध रखता है। आयु के अनुपात से यह मल बढ़ता है और शरीर के यन्त्रों को बिगाड़ देता हैं। इस मल के जमने से नसें व रक्त-नलिकायें मोटी होकर सिकुड़ जाती है।

शरीर के मुख्य अंगों, मुख्यतया मस्तिष्क का रक्त संचार धीमा हो जाता है। इससे मस्तिष्क के कार्य में रुकावट आती है, स्मरण शक्ति क्षीण हो जाती है, विचार अस्थिर रहते हैं। भ्रम, चिता, चिड़चिड़ापन व कामुकता आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं, हृदय शून्य सरीखा हो जाता है। शरीर और मस्तिष्क की इस विकृत अवस्था का कारण नियमित व्यायाम न करना है। व्यायाम द्वारा इस मल को साफ रखकर ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य व लम्बी आयु प्राप्त की जा सकती है।

डाक्टर ‘लीली-के-इन्वेस’ ने अपनी पुस्तक में इस मल का विश्लेषण इस प्रकार किया है – “व्यायाम न करने से शरीर की नसों, पेशियों व अन्य भागों में कचरा, मल व खड़िया-मिट्टी सरीखा पदार्थ जम जाता है जिसमें लाइम फास्फेट, मग्नेशिया आदि पदार्थ भी होते हैं। मनुष्य शरीर के लिए यह पदार्थ विषतुल्य होते हैं। ”

शरीर में इन विजातीय द्रव्यों की मात्रा बढ़ने से मांसपेशियों, ग्रंथियों व अन्य अंगों को पोषण मिलना बन्द हो जाता है, जिससे वे जीर्ण होकर मुरझा जाते हैं और शरीर में निर्जीवता व निर्बलता बढ़ने लगती है। योगासन करने से यह विकार दूर होते हैं। प्रत्येक अंग प्रभावित होता है और शरीर स्वस्थ होता है। अंतड़ियों पर गहरा प्रभाव पड़ता जिससे भोजन शीघ्र पचता है। पेट के अपच, गैस, कब्ज, सड़न आदि रोग नष्ट हो जाते हैं। वीर्य की रक्षा व ब्रह्मचर्य का पालन होता है। योगासनों से चेहरे पर कान्ति, शरीर में बल, मानसिक व बौद्धिक शक्ति का विकास होता है।

योगासन व योग की अन्य क्रियाएं भारतवर्ष की प्राचीन, वैज्ञानिक और सर्वोत्तम विद्या है, इसमें दो विचार नहीं हो सकते। योग के साधन करने से अन्तःकरण शुद्ध होता है, चित्तवृत्तियों का निरोध होकर समाधि की प्राप्ति होती है। यह स्थिति मानव-जीवन की अनोखी सिद्धि है। अन्यान्य समस्याओं से घिरा मानव इस स्थिति को प्राप्त कर सुख व शांति का अनुभव करता है।

उसके सभी दुःख सदा के लिए दूर हो जाते हैं। जीवन के पग-पग पर यातनाओं को अनुभव करने वाले मानव के लिए योग विश्राम-धाम और सुखी जीवन जीने की श्रेष्ठ कला है।
कई व्यक्ति प्रश्न करते हैं कि अन्य व्यायाम जैसे सैर, दण्ड-बैठक, मुगदर, मल्लयुद्ध, अनेक प्रकार के खेलों इत्यादि में क्या दोष है और योगासनों में ऐसी क्या विशेषता है जो इन्हें ही जीवन का अंग बनाया जाये ?

स्वास्थ्य के लिए क्यों जरूरी है योगासन? जानें – 

1. अन्य जितने भी व्यायाम हैं वे केवल मांसपेशियों पर ही प्रभाव डालते हैं। जिससे केवल बाहर से दिखने वाला शरीर ही बलिष्ठ दिखाई देता है। अन्दर काम करने वाले यन्त्र कमजोर हो जाते हैं जिससे व्यक्ति अधिक देर तक स्वस्थ नहीं रह पाता। आंतरिक शक्ति क्षीण हो जाती है, रोग जल्दी पकड़ लेते हैं, हृदय दुर्बल हो जाता है। जबकि योगासन व अन्य क्रियाओं से व्यक्ति की आयु लम्बी होती है, विकार को शरीर से बाहर करने की अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है, शरीर सुन्दर व स्वस्थ बनता है।

2. अन्य व्यायाम व खेलों के लिए स्थान व साधनों की आवश्यकता पड़ती है। खेल तो साथियों के बिना खेले नहीं जा सकते जबकि योगासन व्यायाम अकेले ही दरी व चादर बिछाकर किये जा सकते हैं ।

3. योगासन व्यायाम १० वर्ष से लेकर ८०-८५ वर्ष तक का व्यक्ति कर सकता है और लाभ उठा सकता है जबकि खेल व अन्य व्यायाम का लाभ केवल बच्चे व युवक ही ले सकते हैं । स्त्री-पुरुष दोनों योगासन कर सकते हैं ।

4. दूसरे व्यायाम व खेल व्यक्ति के फेफड़ों, हृदय तथा पेट के कई प्रकार के रोगों से पीड़ित करते हैं जबकि योगासन निरोगी शरीर को बलवान तथा कान्तिमान बनाते हैं और रोगी शरीर को भी रोगों से मुक्त कर उसे स्वस्थ बना देते हैं ।

5. दूसरे व्यायामों से श्वास उखड़ जाता है, हृदय धड़कने लगता है, वहां योगाभ्यास से श्वास स्थिर व शान्त होता है, हृदय की गति स्वाभाविक होती है।

6. दूसरे व्यायामों से बुद्धि का विकास नहीं होता, मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है, इन्द्रियों पर काबू नहीं रहता जबकि योगासनों से बुद्धि का विकास होता है, स्मरणशक्ति व मानसिक शक्ति बढ़ती है, इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति आती है ।

7. दूसरे व्यायामों में अधिक खुराक की आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए अधिक धन खर्च करना पड़ता है जबकि योगासनों में बहुत कम भोजन की आवश्यकता रहती है। पाचन यन्त्रों के ठीक से काम करने से, भोजन पचाने वाले यन्त्र भोजन से पूरे तत्त्व निकाल लेते हैं जिससे शक्ति अधिक मिलती है और खर्च कम होता है।

8. योगासनों से शरीर की रोगनाशक शक्ति का विकास होता है जिससे शरीर किसी भी विजातीय द्रव्य को अन्दर रुकने नहीं देता, तुरन्त बाहर निकालने के प्रयत्न में रहता है जिससे आप रोगमुक्त रहते हैं ।

9. योगासनों से शरीर में लचक पैदा होती है जिससे व्यक्ति फुर्तीला रहता है, शरीर के हर अंग का रक्त में संचार ठीक होता है, जिससे अधिक आयु में भी व्यक्ति युवा लगता है और काम करने की शक्ति बनी रहती है जबकि अन्य व्यायामों से मांसपेसियों में कड़ापन आता है, शरीर कठोर हो जाता है, बुढ़ापा जल्दी आ जाता है।

10. जिस प्रकार घर या गली की नाली की गन्दगी को झाड़ू लगाकर व पानी डालकर साफ करते हैं ताकि उसमें गन्दगी न रुके और नाली साफ रहे और दुर्गन्ध न आये, इसी प्रकार योग के अलग-अलग आसनों से रक्त की नलिकाओं व केशिकाओं को साफ करते हैं ताकि उनमें वानगी रहे और विकार रुके नहीं जिससे आप रोगमुक्त रहें। यह केवल योगासन क्रियाओं से ही हो सकता है, अन्य व्यायामों से नहीं । अन्य व्यायामों से तो हृदय गति तेज हो जाती है और रक्त पूरी तरह शुद्ध भी नहीं हो पाता।

11. फेफड़ों के द्वारा हमारे रक्त की शुद्धि होती है। योगासनों व प्राणायाम द्वारा हम अपने फेफड़ों के फैलने व सिकुड़ने की शक्ति को बढ़ाते हैं जिससे अधिक से अधिक ओषजन वायु फेफड़ों में भर सके और रक्त की शुद्धि हो सके। दूसरे व्यायामों से फेफड़े जल्दी-जल्दी श्वास लेते हैं, जिससे प्राणवायु फेफड़ों के अन्तिम छोर तक नहीं पहुंच पाती । परिणाम यह होता है कि विकार वहां जमा होना शुरू हो जाता है जो बाद में रोग का कारण बनता है।

12. वर्तमान समय में गलत रहन-सहन व अप्राकृतिक भोजन के कारण पाचन संस्थान के यन्त्रों का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल पाता। इन्हें क्रियाशील रखने में योगासन बहुत सहायक सिद्ध होते हैं जबकि दूसरे व्यायामों से पाचन क्रिया बिगड़ जाती है।

13. मेरुदण्ड पर हमारा यौवन निर्भर करता है। सारा रक्त संचार व नाड़ीसंस्थान इसी से होकर सारे शरीर में फैलता है। जितनी लचक रीढ़ की हड्डी में रहेगी, उतना शरीर स्वस्थ होगा, आयु लम्बी होगी, मानसिक सन्तुलन बना रहेगा। यह केवल योगासनों से ही सम्भव है।

14. दूसरे व्यायामों से आपको थकावट आयेगी, बहुत अधिक शक्ति खर्च करनी पड़ेगी; जबकि योगासनों से शक्ति प्राप्त की जाती है, क्योंकि यह धीरे-धीरे व आराम करते हुए किये जाते हैं। इन्हें अहिंसक क्रिया कहा जाता है। आसनों द्वारा शरीर को निरोग व कार्यक्षम रखा जा सकता है।

15. अन्य व्यायामों से मनुष्य के चरित्र पर उत्तम प्रभाव नहीं पड़ता। योगाभ्यास स्वास्थ्य के साथ-साथ चरित्रवान भी बनाता है। इन क्रियाओं से मानसिक व नैतिक शक्ति का विकास होता है, मन स्थिर रहता है। मन के स्थिर रहने से बुद्धि का विकास होता है। चित्त की स्थिरता से सत्त्वगुण की प्रधानता रहती है और सत्त्वगुण से मस्तिष्क बलवान बनता है, मस्तिष्क बलवान रहने से मानसिक शक्ति का विकास होता है और यह सब लाभ केवल योगासन और प्राणायाम से ही प्राप्त हो सकता है।

16. हमारे शरीर में अनेक ग्रन्थियां हैं जो उसे स्वस्थ व निरोग रखने में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। इन ग्रन्थियों का रस रक्त में मिल जाता है जिससे मनुष्य स्वस्थ व शक्तिशाली रह सकता है। गले की थायरायड व पैराथायरड ग्रन्थियों से निकलने वाले रस के पर्याप्त मात्रा में न होने से बालकों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता और युवकों के असमय में ही बाल गिरने लगते हैं तथा शरीर में प्रसन्नता नहीं रहती। शरीर की विभिन्न ग्रन्थियों को सजग करके पर्याप्त मात्रा
रस देने के योग्य बनाने के लिए केवल योगासन-पद्धति ही सर्वोत्तम है। अन्य व्यायाम इसमें सहायक नहीं होते ।

17. शरीर के रोगों के लिए भी आसन, प्राणायाम व षट्कर्म अचूक साधन हैं। जब विजातीय द्रव्यों के बढ़ जाने से शरीर के अंग उन्हें बाहर निकाल पाने में समर्थ नहीं होते तो रोग का आरम्भ होता है। इस विजातीय द्रव्य को बाहर निकालने के लिए इन क्रियाओं का सहारा लिया जा सकता है और अपने को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाया जा सकता है ।

शरीर, मन, बुद्धि तथा आत्मा के विकास, शारीरिक रोगों तथा निर्बलताओं को दूर करने के लिए एकमात्र साधन यह क्रियाएं हैं जिन्हें हर स्त्री, पुरुष, बच्चा, बूढ़ा अपनाकर निरोगी रह सकता है और लम्बी आयु को प्राप्त हो सकता है।

इस आर्टिकल में अअपने जाना की स्वास्थ्य के लिए क्यों जरूरी है योगासन?, कैसा लगा आपको हमें बताएं ।

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