माधोराजपुरा का किला (madhorajpura fort) – वो किला जहां अमीरखाँ पिंडारी की बेगम को कैद मे रखा

Kheem Singh Bhati
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माधोराजपुरा का किला (madhorajpura fort) - वो किला जहां अमीरखाँ पिंडारी की बेगम को कैद मे रखा

माधोराजपुरा का किला (madhorajpura fort)। माधोराजपुरा जयपुर से लगभग 59 कि०मी० दक्षिण में दूदू से लालसोट जाने वाली सड़क पर फागी से लगभग 9 कि०मी० पूर्व में अवस्थित है। एक सुदृढ़ दुर्ग होने के कारण पूर्व जयपुर रियासत के किलों में माधोराजपुरा के किले का विशेष महत्त्व था। इस किले के साथ इतिहास के अनेक रोमांचक दास्तान विशेषकर कछवाहों की नरूका शाखा के वीरों के शौर्य और पराक्रम के उज्ज्वल प्रसंग जुड़े हुए हैं।

ज्ञात इतिहास के अनुसार जयपुर के महाराजा सवाई माधवसिंह प्रथम ने मरहठों पर विजय के उपरान्त माधोराजपुरा का कस्बा अपने नाम पर बसाया था। लेकिन यहाँ का किला इससे भी प्राचीन जान पड़ता है। सम्भवत: प्राचीन किले के आसपास नये सिरे से बस्ती बसायी गयी हो। जयपुर की अनुकृति पर बसे इस छोटे से कस्बे को ‘नंवा शहर’ भी कहा जाता था ।

तदनन्तर माधोराजपुरा का किला जयपुर के महाराजा जगतसिंह की राठौड़ रानी (जोधपुर के महाराजा मानसिंह की पुत्री) की जागीर में रहा जिस पर फिर लदाणा के भारतसिंह नरूका ने अधिकार कर लिया।

कूर्मवंश यश प्रकाश या लावारासा’ में उल्लेख है कि भारतसिंह नरूका ने उस जमाने के प्रसिद्ध लुटेरे और सेनापति अमीरखाँ (पिन्डारी) को सबक सिखाने के लिए माधोराजपुरा के किले को अपनी गतिविधि का केन्द्र बनाया। इसका कारण यह था कि अमीरखाँ ने लावा के युद्ध में नरूंकों को बहुत क्षति पहुँचायी थी तथा वहाँ के हनुमंतसिंह नरूका को धोखे से बन्धक बना लिया था ।

माधोराजपुरा का किला (madhorajpura fort) - वो किला जहां अमीरखाँ पिंडारी की बेगम को कैद मे रखा
माधोराजपुरा का किला (madhorajpura fort) – वो किला जहां अमीरखाँ पिंडारी की बेगम को कैद मे रखा

इस प्रतिशोध के लिए अवसर भी जल्दी ही उपस्थित हो गया। अमीरखाँ पिन्डारी के श्वसुर मुहम्मद अय्याज खाँ की खंगारोत कछवाहों के एक प्रमुख संस्थान टोरडी के ठाकुर विजयसिंह के साथ मित्रता थी। वह उनका पगड़ी बदल भाई बना हुआ था। एक बार ठाकुर विजयसिंह के यहाँ उक्त नवाब (अय्याज खाँ) उसकी बेगम तथा उसके अन्य परिजन जिनमें नवाब की पुत्री यानी अमीरखाँ पिन्डारी की बेगम, अन्य स्त्रियाँ व बच्चे सभी मेहमान के रूप में ठहरे हुए थे।

ऐसे अवसर पर लदाने के कुंवर भारतसिंह नरूका ने अपने कामदार शम्भु धाभाई की योजना के आधार पर धोखे से टोरडी के जनाने महलों पर आक्रमण कर दिया। लावारासा की भूमिका में उक्त घटना का उल्लेख करते हुए कहा गया है उसने (शंभु धाभाई ने) गाँव (टोरडी) में जाकर बहुत से बैलों को एकत्र कर उनके दोनों सींगों पर मशालें जलाकर इधर उधर फैला दिया जिससे यह मालूम हो कि कोई बहुत बड़ा दस्युओं का दल लूटने को आया है।

तब इस प्रकार किसी भी समय लूटमार हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। अय्याज खाँ तथा ठाकुर ने जब इन लोगों का हल्ला सुना तो देखने के लिए अपने स्थान से बाहर आये। अय्याज खाँ ने यह समझा कि रात्रि के अन्धकार के कारण उसी के व्यक्ति लूटमार करने आये होंगे। उन्हें देखने को कुछ व्यक्तियों को गाँव की ओर भेज दिया।

इधर धाभाई ने जनाने महलों पर आक्रमण कर अव्याजखाँ के परिवार की स्त्रियों और बच्चों को जिनमें अमीर खाँ की स्त्री भी थी, अपने अधिकार में करके ले चला और पहरेदारों में से एक को भी समाचार देने के लिए जीवित नहीं छोड़ा । इधर बैलों के सींगों की मशालें बुझने लगीं।

जब नाच गाना समाप्त हुआ और मुहम्मद अय्याज खाँ अपने ठहरने के स्थान पर मध्य रात्रि को वापस आया तो उसे कोई नहीं मिला। उसे इतनी बड़ी घटना का जरा भी भान न हुआ। उधर धाभाई बेगमों को माधोराजपुरा के किले में ले गया जहाँ उन्हें आराम से (बंधक) रखा ।

जब अमीरखाँ को इस दुर्घटना का समाचार मिला तो उसने अपनी विशाल सेना के साथ माधोराजपुरा के किले को घेर लिया। घेरा डालने के बाद अमीरखाँ ने भारतसिंह को अपने परिवार वालों को छोड़ देने के लिए संदेश भेजा। भारतसिंह ने फसल पकने तक अपना मंतव्य प्रकट नहीं होने दिया।

जब फसल पक कर तैयार हो गयी और खाने पीने की प्रचुर सामग्री किले में एकत्र कर ली गयी तब उसने बेगमों को छोड़ने से इनकार कर दिया। इस पर अमीरखाँ ने राणोतकी ओर से आगे बढ़ कर घेरे को और भी संकुचित कर लिया। उसने घुड़सवार सेना को भी मदद पर बुला लिया। इन्हें किले के चारों ओर लगा कर, मार्ग अवरुद्ध कर, शहर से किलेवालों का सम्बन्ध विच्छेद करने के पश्चात आक्रमण कर दिया।

इस प्रकार घेरा डाले हुए और आक्रमण करते हुए कई मास व्यतीत हो जाने पर भी अमीरखाँ को सफलता नहीं मिली, तब उसने अपनी सेना के सम्पूर्ण अधिकारियों को एकत्र कर परामर्श किया और यह निश्चय किया कि किले की एक ओर की दीवार को तोड़कर किले में प्रवेश कर, आक्रमण करना चाहिए ।

इस योजना के अनुसार कार्यवाही आरंभ की गयी किन्तु अमीरखाँ के काबुली सिपाही- जो हिन्दी नहीं समझते थे- दीवार टूटने से पहले ही आक्रमण कर बैठे जिससे किले वाले सतर्क हो गये और किले में से तोपों से जबर्दस्त गोले बरसाये गये जिससे अमीरखाँ को बहुत हानि उठानी पड़ी। अमीरखाँ की यह योजना असफल हो गयी ।

इधर किले में भारतसिंह नरूका ने नवाब के बीबी बच्चों को ऐसे प्रेम एवम् आदर से रखा कि वे उसे जीवन पर्यन्त न भूल सके जिससे उनमें आपस में सगे भाई बहिनों का सा सम्बन्ध हो गया था। एक बार फिर नवाब ने दीवार तोड़ने का यत्न किया तो उस समय नवाब के बीबी बच्चों ने अमीरखाँ से कहलाया कि यदि आपने किले की दीवारों को तोड़ने का फिर प्रयत्न किया तो हम उस स्थान पर पहुँच जावेंगे- हमारे मरने पर ही बाबा भारतसिंह व अन्य राजपूतों पर आँच आ सकती है।

इस तरह माधोराजपुरा के किले का घेरा चलते हुए एक वर्ष होने को आ गया था। क्योंकि यह घेरा 21 नवम्बर 1816 ई० को आरंभ हुआ था और फिर से 1817 ई० का नवम्बर आ गया था। किले का पतन हो इससे पहले ही अमीरखाँ सन्धि करने को विवश हो गया। कारण उन दिनों अंग्रेज सरकार अमीरखाँ द्वारा लूटे गये इलाकों में अपनी सेनायें भेज रही थी। अतः अमीरखाँ ने भारतसिंह को धन देकर अपने श्वसुर के परिवार को छुड़वाया तथा घेरा उठा लिया गया। इस प्रकार एक रोमांचक घटनाक्रम का पटाक्षेप हुआ।

माधोराजपुरा के किले के साथ इतिहास की एक और दास्तान जुड़ी हुई है। अपने समय में जयपुर की राजनीति में प्रभावशाली भूमिका निभानेवाली महिला, महाराजा सवाई जयसिंह तृतीय की धाय रूपा बढ़ारण को उसके दरबारी षड़यन्त्रों और कुचक्रों की सजा के रूप में माधोराजपुरा के इसी किले में नजरबन्द रखा गया था ।

किले की स्थिति माधोराजपुरा का किला (madhorajpura fort)

अपनी विशिष्ट सामरिक स्थिति और उन्नत व्यूह रचना के कारण माधोराजपुरा का किला एक दुर्भेद्य दुर्ग माना जाता था। विशाल बुर्जों और सुदृढ़ प्राचीर से युक्त यह किला आज भग्न हालत में अपने विस्मृत वैभव की कहानी कहता है। यह किला एक स्थल दुर्ग है जिसके चारों ओर लगभग 20 फीट चौड़ी और 30 फीट गहरी परिखा है। किले के भीतर विद्यमान विक्रम संवत 1815 के एक शिलालेख में इस नहर के पानी को गन्दा करने के विरुद्ध चेतावनी का उल्लेख है जिससे पता चलता है कि यह नहर स्वच्छ पानी से युक्त रहती होगी।

माधोराजपुरा के किले (माधोराजपुरा का किला) के चारों तरफ नहर के अलावा दोहरा परकोटा है। किले का मुख्य प्रवेशद्वार उत्तर की तरफ है तथा तीन विशाल दरवाजे पार करने के बाद भीतर प्रवेश होता है। किले के भीतर बायीं तरफ छोटे बड़े कई महल हैं तथा एक पातालफोड़ कुंआ भी विद्यमान है।

माधोराजपुरा का किला (madhorajpura fort) - वो किला जहां अमीरखाँ पिंडारी की बेगम को कैद मे रखा
माधोराजपुरा का किला (madhorajpura fort) – वो किला जहां अमीरखाँ पिंडारी की बेगम को कैद मे रखा

कालप्रभाव तथा उपयोग न होने से इस कुँए का पानी दूषित हो गया लगता है। किले की इस ओर की अर्थात् बायीं तरफ वाली बुर्ज में विशाल अन्न भंडार बना हुआ है जिसमें हजारों मन अनाज आसानी से संगृहीत किया जाता रहा होगा। किले के बीचोंबीच एक भोमियाजी का स्थान है। जनश्रुति के अनुसार ये भोमिया करणसिंह नरूका हैं जो किले की रक्षार्थ किसी अज्ञात युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इसके पार्श्व में बारादरी और जनाने महल हैं जिनमें से एक महल में पुष्पलताओं का सुन्दर अलंकरण आज भी विद्यमान है।

जनाने महलों के भीतर पानी से बन्द टांका जीर्ण शीर्ण रूप में है। इन महलों के साथ दासियों (डावड़ियों) के रहने के भवन तथा स्नानागार आदि हैं। किले की दायीं तरफ वाली बुर्ज का उपयोग सम्भवत: राजनैतिक कैदियों को रखने के लिए होता था। इस बुर्ज के सामने एक गुम्बद की सी आकृति का भवन है जिसे स्थानीय लोग चक्कीपाड़ा कहते हैं ।

किले की पश्चिमी बुर्ज सिलहखाना (शस्त्रागार) प्रतीत होती है जहाँ तोपों को रखने के निशान, बारूद रखने के सुराख आदि विद्यमान हैं। किले के पश्चिमी तरफ एक ऊँचा भग्न महल है जो रानी वाला महल कहलाता है। किले के दूसरे भवनों में अश्वशाला, सुरक्षा प्रहरियों के कक्ष आदि उल्लेखनीय हैं। किले के प्रवेश द्वार के भीतर एक शिव मंदिर भी विद्यमान है। सारत: माधोराजपुरा का किला हमारे इतिहास की एक गौरवशाली धरोहर को संजोये हुए है ।

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