आरएसएस नेताओं की मुस्लिम बुद्धिजीवियों, उलेमाओं संग हुई बैठक; काशी-मथुरा, गौ-हत्या और काफिर शब्द पर हुई चर्चा

Sabal Singh Bhati
6 Min Read

नई दिल्ली, 26 जनवरी ()। देश के हिंदुओं और मुस्लिमों को एक मंच पर लाने की कवायद के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा देश के मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ संपर्क और संवाद की कोशिशें लगातार जारी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोशिश अब एक कदम और आगे बढ़ गई है और इसमें मुस्लिम उलेमा भी जुड़ गए हैं।

इन्हीं कोशिशों के तहत नए साल में 14 जनवरी को आरएसएस नेताओं की मुस्लिम बुद्धिजीवियों और उलेमाओं के साथ तीन घंटे की लंबी मैराथन बैठक हुई जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत के हाल ही में दिए गए इंटरव्यू, काशी के ज्ञानवापी मस्जिद एवं मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मसले से जुड़े विवाद, गौ-हत्या, मॉब लिंचिंग, दोनों पक्षों की तरफ से आने वाले विवादित बयानों के साथ ही काफिर शब्द का इस्तेमाल नहीं करने के मसले पर भी बात हुई। इस मैराथन बैठक में यह तय हुआ कि दोनों ही पक्ष पहले सहमति और सौहार्द वाले मुद्दों को लेकर आगे बढ़ेंगे और जल्द ही दोनों पक्षों की तरफ से एक और बड़ी बैठक की जाएगी।

दिल्ली के दरियागंज में पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग के घर पर 14 जनवरी को हुई इस बैठक में आरएसएस की तरफ से कृष्ण गोपाल, रामलाल और इंद्रेश कुमार शामिल हुए। वहीं मुस्लिमों की तरफ से नजीब जंग के साथ ही पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी, उद्योगपति एवं समाजसेवी सईद शेरवानी, जमात ए इस्लामी हिंद से मलिक मोहतसिम खान, जमीयत उलेमा ए हिंद के महमूद मदनी गुट से मौलाना नियाज फारूकी एवं जमीयत के अरशद मदनी गुट से मौलाना फजलुर रहमान कासमी, अजमेर शरीफ से सलमान चिश्ती, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और इस्लामिक स्टडीज के जानकार सहित दोनों पक्षों की तरफ से लगभग 20 लोग बैठक में मौजूद थे।

पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी ने को बताया कि बैठक में इस बात को लेकर सहमति बनी कि दोनों ही पक्ष पहले सहमति वाले मुद्दों को लेकर आगे बढ़ें ताकि समाज में शांति और सौहार्द कायम हो सके। उन्होंने यह भी बताया कि जल्द ही दोनों पक्षों की तरफ से एक और बड़ी बैठक की जाएगी जिसमें कई अहम मुद्दों पर चर्चा होगी। इस तरह की बैठक देश के अलग-अलग हिस्सों में भी आयोजित करने पर चर्चा हुई।

शाहिद सिद्दीकी ने बताया कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिए गए इंटरव्यू का मसला उठाया गया जिसके जवाब में संघ नेताओं की तरफ से उन्हें पांचजन्य में छपा हिंदी का इंटरव्यू पढ़ कर सुनाया गया। बैठक में शामिल संघ के एक नेता ने को बताया कि पांचजन्य का इंटरव्यू सुनने के बाद मुस्लिम पक्ष के लोगों ने भी यह स्वीकार किया कि संघ प्रमुख का इंटरव्यू गलत संदर्भ में तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।

बैठक में संघ ने काशी और मथुरा का मसला उठाया तो मुस्लिम पक्ष की तरफ से यह स्पष्ट तौर पर कहा गया कि इन दोनों मसलों का समाधान तो अदालत के जरिए ही हो सकता है। मुस्लिम पक्ष की तरफ से मॉब लिंचिंग का मसला उठाया गया जिसे आरएसएस नेताओं ने भी गलत माना। वहीं संघ नेताओं द्वारा हिंदू भावना का सम्मान और गौ हत्या का मसला उठाने पर मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया कि अगर सरकार पूरे देश में गौ हत्या पर पाबंदी का कानून बनाना चाहती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है और वो इसका समर्थन करेंगे।

बैठक में काफिर शब्द के इस्तेमाल का भी मुद्दा उठा। सूत्रों के मुताबिक, संघ नेताओं की तरफ से यह कहा गया कि राष्ट्र सभी को जोड़ता है। हर समुदाय में अलग-अलग फिरके हैं तो जो किसी भी रूप में ईश्वर यानी ऊपर वाले को मानता है तो उसे काफिर कैसे कहा जा सकता है? जिस पर मुस्लिम पक्ष यहां तक कि मुस्लिम उलेमाओं ने भी यह स्वीकार किया कि हिंदुस्तान और हिंदुओं के संदर्भ में काफिर शब्द का इस्तेमाल करना पूरी तरह से गलत और अनुचित है और इसका इस्तेमाल कतई नहीं होना चाहिए।

वहीं से बात करते हुए शाहिद सिद्दीकी ने आगे बताया कि बैठक में काफी सौहार्दपूर्ण वातावरण में तमाम मुद्दों पर बातचीत हुई। उन्होंने इसे आइस ब्रेकिंग बैठक बताते हुए कहा कि यह दोनों समुदायों के बीच खिड़की खोलने का हमारा प्रयास था और उन्हें उम्मीद है कि आगे दरवाजे भी खुलेंगे।

आपको बता दें कि, मुस्लिम समुदाय से संपर्क और संवाद बढ़ाने की कवायद के तहत संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले वर्ष 22 अगस्त को नई दिल्ली में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक वर्ग के साथ मुलाकात की थी और इस वर्ष 14 जनवरी को हुई यह बैठक उसी कड़ी का एक हिस्सा थी और इस अभियान के तहत आने वाले दिनों में इस तरह की कई और बैठकें भी होनी है।

एसटीपी/एसकेपी

Share This Article
Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times