जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकार तथा यूजीसी से पूछा है कि मानसिक स्वास्थ्य विषय को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। इसके साथ ही अदालत ने शिक्षण संस्थाओं में मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं की नियुक्ति के संबंध में भी जानकारी मांगी है। अदालत ने शिक्षा मंत्रालय, प्रमुख शिक्षा सचिव, शिक्षा निदेशक और यूजीसी सहित सीबीएसई को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। जस्टिस एसपी शर्मा और जस्टिस संजीत पुरोहित की खंडपीठ ने यह आदेश सुजीत स्वामी व अन्य द्वारा दायर जनहित याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई के दौरान दिए।
याचिका में अधिवक्ता अमित दाधीच ने अदालत को बताया कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी के अनुसार साल 2015 से 2023 तक कोटा, बारां और झालावाड में 12 से 30 साल के 1799 लोगों ने आत्महत्या की। वहीं 2021 से पिछले मार्च तक 10 से 30 साल की उम्र के सीकर में 464, जयपुर दक्षिण में 172 और जोधपुर पूर्व में 187 सहित अन्य स्थानों पर दर्जनों लोगों ने आत्महत्या की है। इसके अलावा एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार देशभर में 7 फीसदी से अधिक आत्महत्या छात्रों से संबंधित है।
वहीं 2 फीसदी से अधिक किशोर अपराध दर भावनात्मक तनाव से जुड़ी है। याचिका में कहा गया कि शैक्षणिक संस्थानों में न तो मानसिक स्वास्थ्य केन्द्र बने हैं और न ही मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं की नियुक्ति की गई है। इसके अलावा मानसिक स्वास्थ्य विषय को पाठ्यक्रम में भी शामिल नहीं किया गया है। यदि शैक्षणिक संस्थानों में विद्यार्थियों को मानसिक दबाव से निपटने के लिए तैयार किया जाए तो आत्महत्याओं में कमी लाई जा सकती है।
याचिका में गुहार की गई है कि सभी शैक्षणिक संस्थानों में अगले छह माह में प्रशिक्षित परामर्शदाताओं की नियुक्ति के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना की जाए। साथ ही आयु और कक्षा के अनुसार मानसिक कल्याण पाठ्यक्रम भी लागू किया जाए। इस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए इस संबंध में उठाए जा रहे कदमों की जानकारी मांगी है।


