जयपुर। कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले अल्पसंख्यक वर्ग में पिछले एक दशक में कई अल्पसंख्यक नेताओं का निधन हो चुका है। नए नेताओं के पास पार्टी में अपनी पहचान बनाने का अवसर है, क्योंकि प्रदेश में लगभग 11 प्रतिशत अल्पसंख्यक वर्ग का 30 से अधिक सीटों पर प्रभाव है। मुस्लिम मतदाताओं की कई सीटों पर निर्णायक भूमिका मानी जाती है। जयपुर के किशनपोल, आदर्शनगर और हवामहल विधानसभा क्षेत्रों में एक लाख से अधिक अल्पसंख्यक मतदाता हैं।
इसके अलावा सिविल लाइंस, फतेहपुर, सीकर, लक्ष्मणगढ़, मंडावा, नवलगढ़, झुंझुनूं, परबतसर, लाडनूं, डीडवाना, नागौर, किशनगढ़, मकराना, सूरसागर, सरदारशहर, अलवर ग्रामीण, रामगढ़, तिजारा, किशनगढ़वास, अजमेर उत्तर, पुष्कर, मसूदा, नगर, कामां, भरतपुर शहर जैसे विधानसभा क्षेत्रों में अल्पसंख्यक वोटर अच्छी संख्या में हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पिछले दो दशकों में राजस्थान में कांग्रेस ने अपने अल्पसंख्यक नेताओं को ज्यादा महत्व नहीं दिया है। अब एक दशक में कई बड़े अल्पसंख्यक नेताओं के निधन के बाद वरिष्ठ नेताओं की कमी महसूस हो रही है। पार्टी के पास अभी भी कई चेहरे हैं, लेकिन उनका प्रभाव पूरे प्रदेश में नहीं है।
पहले चौधरी तैयब हुसैन, अब्दुल हादी खान, माहिर आजाद जैसे नेता प्रदेशभर के अल्पसंख्यक वर्ग के लिए मुखर रहते थे। दिवंगत नेताओं में कई नेता संगठन में उच्च पदों पर भी पहुंचे, जिनमें अश्क अली टाक और जुबेर खान जैसे नेता राजस्थान से लेकर केन्द्र में संगठन में रहे हैं। नए नेता पार्टी में पैठ जमाने के प्रयास कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली का मानना है कि कांग्रेस में अल्पसंख्यक समुदाय की लीडरशिप बढ़ रही है। मौजूदा विधायकों में रफीक खान, अमीन कागजी, हाकम अली और जाकिर हुसैन जैसे नाम शामिल हैं।
दानिश अबरार कांग्रेस में राष्ट्रीय सचिव हैं। इनके अलावा वाजिब अली और भाजपा से कांग्रेस में आए अमीन पठान जैसे नेता भी पार्टी में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वरिष्ठ नेताओं में अमीन खान का नाम भी शामिल है, लेकिन पहले निष्कासन और बाद में वापसी के कारण वे हाशिए पर चले गए हैं। पूर्व मंत्री दुर्रू मियां भी इन दिनों पार्टी में हाशिए पर हैं।