प्रधानमंत्री मोदी का हास्य: राजनीति में हल्के-फुल्के अंदाज का महत्व

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

नई दिल्ली। चाहे संसद में काव्यात्मक स्पर्श और चतुर शब्द-विन्यास के माध्यम से, गुजरात की जनसभाओं में जोशीले व्यंग्य के माध्यम से या वैश्विक मंच पर शानदार हास्य के माध्यम से, उनकी वाक्पटुता राजनीतिक संवाद में गर्मजोशी और जुड़ाव लाती है। उनका हल्का-फुल्का अंदाज हमेशा मौजूद रहता है, यह दर्शाता है कि सच्चाई, जब मुस्कान के साथ साझा की जाती है, तो अधिक गहराई से प्रतिध्वनित होती है। जो आनंदित करता है, वो कायम रहता है और मोदी के मामले में हास्य दिलों और दिमागों तक पहुंचने का एक सेतु बन जाता है।

राजनीति में हास्य एक शक्तिशाली शक्ति है-एक कलात्मक साधन जो तनाव को कम कर सकता है, जुड़ाव को बढ़ावा दे सकता है और सत्य को उजागर कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए हास्य केवल सजावट की चीज नहीं है बल्कि यह उनके नेतृत्व-शैली में बुना हुआ एक जीवंत सूत्र है। कूटनीति में हास्यपूर्ण अंदाज वैश्विक मंच पर भी हास्य एक कूटनीतिक उपकरण बन गया। मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रसपति इमैनुएल मैक्रों से मजाक करते हुए कहा, आजकल, आप ट्विटर पर ही लड़ाई कर रहे हैं।

कैरेबियाई क्रिकेटरों क्रिस गेल और डैरेन सैमी से उन्होंने छक्के मारने और डांस मूव्स पर मजाकिया बातचीत की। इन क्षणों में कूटनीति और चंचलता का संगम हुआ। प्रधानमंत्री बनने पर मोदी की हाजिरजवाबी को एक बड़ा मंच मिला। संसद – जो अक्सर टकराव का अखाड़ा होती है कई बार हास्य और विनोद का मंच बन गई। उदाहरण के लिए 2018 में राहुल गांधी की आंख मारने की घटना पर मोदी ने उनकी नकल उतारी और सदन ठहाकों से गूंज उठा। ऐसे क्षणों में उनका हास्य तनाव को कम करता था, लेकिन गंभीरता को घटाता नहीं था।

जब मोदी मुख्यमंत्री बने, तो उनके हास्य में तीखापन आ गया। भरी सभाओं में व्यंग्य एक शक्तिशाली राजनीतिक उपकरण के रूप में विकसित हुआ। कांग्रेस नेताओं के वादों को बॉलीवुड के संवादों से जोड़ा गया: कांग्रेस के नेता ऐसे वादे करते हैं जैसे शोले का गब्बर – अरे ओ सांभा, कितने वोट लाए? गरीब कल्याण मेलों में, जहां कल्याणकारी योजनाएं प्रस्तुत की जाती थीं, उन्होंने अपने आलोचकों पर कटाक्ष किया। उन्हें गरीब कल्याण मेला पसंद नहीं, शायद वो गरीब रुलाओ मेला करना चाहते हैं।

और जब उनसे पूछा गया कि वे प्रतिद्वंद्वियों के हमलों की बौछार से कैसे बचे, तो उनका जवाब शुद्ध सड़क की वाक्पटुता था। मैं रोज 2-3 किलो गाली खाता हूं, इसलिए मुझे कुछ होता नहीं। यह मजाक इतना यादगार बन गया कि उन्होंने वर्षों बाद प्रधानमंत्री के रूप में इसे दोहराया।

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