केंद्र की मोदी सरकार द्वारा तैयार लेबर पॉलिसी के ड्राफ्ट में प्राचीन ग्रंथ मनुस्मृति का उल्लेख होने से राजनीतिक विवाद छिड़ गया है। विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे आरएसएस की विचारधारा थोपने का प्रयास बताते हुए तीखा विरोध जताया है। ड्राफ्ट में श्रम को धार्मिक कर्तव्य के रूप में वर्णित किया गया है, जहां मनुस्मृति सहित कई ग्रंथों का हवाला देकर मजदूरी निर्धारण और श्रमिक हितों की रक्षा पर जोर दिया गया है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह कदम संविधान के मूल्यों से भटकाव दर्शाता है, क्योंकि आरएसएस ने स्वतंत्र भारत के संविधान को मनुस्मृति के आदर्शों से प्रेरित न होने के कारण ही नकारा था। ड्राफ्ट पॉलिसी में श्रम की भारतीय दृष्टि को आर्थिक से आगे नैतिक और पवित्र कर्तव्य के रूप में चित्रित किया गया है। इसमें कहा गया है कि काम केवल जीविका का साधन नहीं, बल्कि धर्म की व्यापक व्यवस्था में योगदान है, जो सामाजिक सद्भाव और समृद्धि को मजबूत करता है।
हर श्रमिक चाहे कारीगर हो, किसान हो या औद्योगिक मजदूर को सामाजिक सृजन का अभिन्न अंग माना गया है। प्राचीन ग्रंथों के संदर्भ में मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, नारदस्मृति, शुक्रनीति और अर्थशास्त्र का जिक्र है, जो राजधर्म के माध्यम से श्रम शासन के नैतिक आधार को रेखांकित करते हैं। इन ग्रंथों में न्यायपूर्ण मजदूरी, समय पर वेतन भुगतान और शोषण से सुरक्षा पर बल दिया गया है, जो आधुनिक श्रम कानूनों की नींव माने गए हैं। मनुस्मृति में मजदूरी निर्धारण और श्रमिक हितों की रक्षा के सिद्धांत स्पष्ट हैं, जहां वेतन भुगतान को न्याय का प्रतीक बताया गया है।
वहीं, शुक्रनीति में नियोक्ता के कर्तव्य पर जोर देते हुए सुरक्षित और मानवीय कार्य वातावरण सुनिश्चित करने की बात कही गई है। हालांकि, मनुस्मृति को जातिगत भेदभाव से जोड़कर देखा जाता रहा है, जिसके कारण इस जिक्र ने विवाद को हवा दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अन्य ग्रंथों के साथ मनुस्मृति का समावेश सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करने का प्रयास है, लेकिन यह राजनीतिक बहस को नई ऊंचाई दे सकता है।
जयराम रमेश ने ट्वीट कर उठाया सवाल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए कहा कि मनुस्मृति का हवाला आरएसएस की प्रिय परंपरा को प्रतिबिंबित करता है, जो समावेशी समाज के खिलाफ है। जयराम रमेश ने ट्वीट कर सवाल उठाया कि क्या सरकार संविधान को दरकिनार कर प्राचीन ग्रंथों पर आधारित नीतियां बनाएगी? विपक्ष का आरोप है कि यह कदम श्रमिकों के आधुनिक अधिकारों को कमजोर कर सकता है। दूसरी ओर, सरकार समर्थक इसे भारतीय ज्ञान परंपरा को सम्मान देने का प्रयास बता रहे हैं।
मामला अब संसदीय बहस तक पहुंच सकता है, जहां श्रम सुधारों पर व्यापक चर्चा की उम्मीद है।


