भारत के राजनीतिक इतिहास में 25 फरवरी 1957 का दिन मध्य प्रदेश के लिए एक मील का पत्थर था। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के बाद बने नए मध्य प्रदेश में यह पहला विधानसभा चुनाव था। इस ऐतिहासिक चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज करते हुए 288 में से 232 सीटों पर कब्जा किया और अपनी राजनीतिक ताकत का लोहा मनवाया। यह चुनाव नवगठित राज्य की राजनीतिक दिशा तय करने वाला था। कुल 1,108 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे, जो 218 विधानसभा क्षेत्रों के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे थे।
इन क्षेत्रों में 149 एकल-सदस्यीय और 69 द्वि-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र शामिल थे। कांग्रेस का एकतरफा दबदबा इस चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद प्रभावशाली रहा। पार्टी ने लगभग 49.83 प्रतिशत लोकप्रिय वोट हासिल किए, जो उस दौर में जनता के बीच उसकी गहरी पैठ को दर्शाता है। पिछले विधानसभा (राज्य पुनर्गठन से पहले) के मुकाबले कांग्रेस ने 38 सीटों की बढ़त हासिल की थी, जो एक बड़ी उपलब्धि थी। अन्य दलों का प्रदर्शन और जनसंघ का उदय कांग्रेस की इस लहर के बीच प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (PSP) 12 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।
वहीं, भारतीय जनसंघ (BJS), जो बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) बनी, ने भी इस चुनाव से राज्य में अपनी राजनीतिक नींव रखी। जनसंघ ने 9.90 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 10 सीटें जीतीं और एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके अलावा, अखिल भारतीय राम राज्य परिषद को 5 सीटें और अखिल भारतीय हिंदू महासभा को 7 सीटें मिलीं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने भी 2 सीटों पर जीत हासिल की। इन चुनावों में 20 निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत दर्ज की, जो राज्य के विविध राजनीतिक परिदृश्य को दिखाता है।
मतदान और मतदाता चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, उस समय राज्य में कुल 1,38,71,727 पंजीकृत मतदाता थे। हालांकि, मतदान प्रतिशत केवल 37.17 प्रतिशत ही रहा। कम मतदान के बावजूद इस चुनाव ने मध्य प्रदेश की शुरुआती राजनीति की नींव रखी, जिसका प्रभाव आज भी देखा जाता है।

