मध्यप्रदेश में वनभूमि पर अतिक्रमण की गंभीर स्थिति

Jaswant singh

उमंग सिंघार ने राज्य सरकार पर जंगलों को बचाने में पूरी तरह नाकाम रहने का आरोप लगाते हुए कहा है कि वनभूमि पर अतिक्रमण के मामले में मध्य प्रदेश पूरे देश में पहले स्थान पर है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में जमा की गई रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने भूमाफिया और अवैध उत्खनन के मुद्दे पर बीजेपी पर निशाना साधा है।

नेता प्रतिपक्ष ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है कि केंद्र और राज्य सरकार की अनुमति के बिना वनभूमि का एक इंच भी लैंड-यूज नहीं बदला जा सकता है और इससे स्पष्ट होता है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के जंगलों को न काटा जा सकता है और न ही कब्जा किया जा सकता है। उमंग सिंघार ने कहा है कि मध्य प्रदेश सरकार ने खुद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में दाखिल रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि राज्य की 5.46 लाख हेक्टेयर से अधिक वनभूमि पर अवैध कब्जा हो चुका है।

यह आंकड़ा प्रदेश की कुल वनभूमि का 7.17 प्रतिशत है। उन्होंने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रभार वाले इंदौर जिले में 680.599 हेक्टेयर और राजधानी भोपाल में 5,929.156 हेक्टेयर वनभूमि पर अतिक्रमण हो चुका है। सिंघार ने कहा कि जब प्रदेश की राजधानी और आर्थिक राजधानी का यह हाल है, तो बाकी जिलों की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा अतिक्रमण वाले जिलों में छिंदवाड़ा, बड़वानी, खरगोन, बुरहनपुर और अलीराजपुर का नाम शामिल है।

इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट-2023 के अनुसार, 2019 से 2023 के बीच मध्य प्रदेश में 40,856 हेक्टेयर जंगल कम हो गए हैं, जो अरुणाचल प्रदेश के बाद देश में दूसरा सबसे बड़ा नुकसान है। उमंग सिंघार ने आरोप लगाया कि जंगलों के कम होने की मुख्य वजह भूमाफियाओं का कब्जा, बड़े उद्योगपतियों द्वारा खनन, रिसॉर्ट, लग्जरी कॉलोनियां और अन्य कमर्शियल निर्माण हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय तथा राज्य सरकार की अनुमति के बिना वनभूमि का एक इंच भी लैंड-यूज नहीं बदला जा सकता।

कांग्रेस नेता ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है कि जब भी विपक्ष या मीडिया जंगल अतिक्रमण का मुद्दा उठाता है तो भाजपा सरकार और वन विभाग कार्रवाई के नाम पर जंगल के आसपास रहने वाले गरीब आदिवासियों को अतिक्रमणकारी बताकर उजाड़ देते हैं जबकि उनके वन अधिकार अधिनियम के तहत पट्टे वर्षों से लंबित पड़े हैं। उन्होंने सरकार और प्रशासन पर बड़े कॉलोनाइजर और उद्योगपतियों को खुला संरक्षण देने का आरोप लगाया है।

Share This Article
Follow:
Jaswant singh Harsani is news editor of a niharika times news platform