मुंबई एयरपोर्ट पर विदेशी यात्री से गिबन की तस्करी का मामला

मुंबई एयरपोर्ट पर एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने कस्टम अधिकारियों को भी हैरान कर दिया। बैंकॉक से भारत आए एक विदेशी यात्री के ट्रॉली बैग से दो दुर्लभ सिलवरी गिबन (लंगूर की प्रजाति) बरामद किए गए। इनमें से एक की दम घुटने से मौत हो चुकी थी, जबकि दूसरा अभी जीवित पाया गया। कस्टम विभाग ने इस पूरी तस्करी का पर्दाफाश करते हुए आरोपी यात्री को गिरफ्तार कर लिया है और उससे पूछताछ जारी है। कस्टम विभाग को पहले से ही इस यात्री के बारे में पुख्ता खुफिया जानकारी मिली थी।

जैसे ही वह बैंकॉक से मुंबई एयरपोर्ट पर उतरा, टीम ने उसे रोक लिया। जांच के दौरान उसके बैग से एक बड़ी टोकरी मिली, जिसे कपड़ों और पैकिंग मटेरियल से बारीकी से छिपाया गया था। वाइल्डलाइफ ट्रैफिकिंग रैकेट जब टोकरी को खोला गया, तो अंदर दो छोटे-छोटे सिलवरी गिबन थे। एक लगभग चार महीने का और दूसरा करीब दो महीने का था। अफसरों के मुताबिक, जीवों को बहुत ही अमानवीय तरीके से पैक किया गया था, ताकि कोई बाहरी आवाज या हरकत महसूस न कर सके।

जांच में सामने आया है कि यह सिर्फ एक मामूली स्मगलिंग का मामला नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वाइल्डलाइफ ट्रैफिकिंग रैकेट से जुड़ा हुआ है। गिरफ्तार यात्री पहले मलेशिया गया था, और वहां से बैंकॉक पहुंचा, जहां एक सिंडिकेट सदस्य ने उसे यह बैग सौंपा था। आरोपी का काम सिर्फ यह बैग भारत में किसी शख्स तक पहुंचाना था। प्रारंभिक जांच में इस बात के भी संकेत मिले हैं कि इससे पहले भी कई बार इसी रूट से विदेशी वन्यजीवों की तस्करी की जा चुकी है।

अधिकारियों ने ये कहा कस्टम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमें पहले से जानकारी थी कि एक यात्री के माध्यम से लुप्तप्राय प्रजातियों को भारत लाने की कोशिश की जा रही है। जब हमने उसके बैग की जांच की, तो अंदर दो गिबन मिले। दोनों बेहद कमजोर हालत में थे। दुर्भाग्य से, एक की जान नहीं बचाई जा सकी, जबकि दूसरा फिलहाल हमारी निगरानी में है। अधिकारी ने यह भी कहा कि यात्री को सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत गिरफ्तार किया गया है।

उसके मोबाइल और पासपोर्ट की भी जांच की जा रही है, ताकि उसके संपर्कों और सिंडिकेट के बाकी सदस्यों तक पहुंचा जा सके। सिलवरी गिबन क्या है? सिलवरी गिबन दक्षिण-पूर्व एशिया के वर्षावनों में पाया जाने वाला वानर है, जो खास तौर पर इंडोनेशिया के जावा द्वीप का मूल निवासी माना जाता है। इसका फर हल्का चांदी जैसा होता है, जिससे इसका नाम सिलवरी पड़ा। इनकी पहचान लंबी बाहों, नीली-भूरी आंखों और बेहद फुर्तीले शरीर से की जाती है। यह पेड़ों पर ऊंचाई में रहते हैं और समूह में जीवन जीते हैं।

आईयूसीएन (IUCN) ने इसे लुप्तप्राय प्रजाति (Endangered Species) की श्रेणी में रखा है, क्योंकि जंगलों में इनकी संख्या 2,500 से भी कम रह गई है। तस्कर अक्सर इन मासूम जीवों को पालतू जानवर की तरह बेचने या अवैध प्रजनन केंद्रों में भेजने के लिए पकड़ लेते हैं। वन्यजीव तस्करी पर कड़ा कानून भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत ऐसे जीवों की अवैध तस्करी गंभीर अपराध है। दोषी पाए जाने पर आरोपी को 7 साल तक की सजा और भारी जुर्माना हो सकता है।

इसके बावजूद, एयरपोर्ट और समुद्री मार्गों से जीवों की तस्करी के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, हाल के वर्षों में विदेशी पक्षियों, सांपों, बंदरों और कछुओं की तस्करी में तेज़ी आई है। कस्टम टीम ने जिंदा बचे सिलवरी गिबन को वाइल्डलाइफ रेस्क्यू सेंटर भेज दिया है, जहां उसकी सेहत की निगरानी की जा रही है। पशु चिकित्सकों का कहना है कि लंबे सफर और ऑक्सीजन की कमी के कारण वह डरा-सहमा हुआ है, लेकिन उसकी स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है।

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Vikram Singh Bhati is author of Niharika Times web portal
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