कोटा। कबूतरों के पंखों की फड़फड़ाहट और बीट से उत्पन्न होने वाले बैक्ट्रीरिया से होने वाली जानलेवा बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए दैनिक नवज्योति ने लगातार खबरें प्रकाशित की हैं। नवज्योति में प्रकाशित खबर को वन्यजीव विभाग कोटा ने अपने अभियान का हिस्सा बना लिया है। वन अधिकारी और कर्मचारी अब स्कूलों में जाकर बच्चों को कबूतरों को दाना डालने से होने वाले स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी के नुकसान के बारे में जानकारी दे रहे हैं। शोर्ट मूवी और समाचार कटिंग के माध्यम से बच्चों को बुनियादी शिक्षा दी जा रही है।
वन्यजीव विभाग के डीएफओ अनुराग भटनागर ने नवज्योति के प्रयासों की सराहना की है। उन्होंने बताया कि कबूतरों के पंख और बीट में जानलेवा बैक्ट्रीरिया होते हैं, जो हवा के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर फेफड़ों में गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं। इस स्थिति में लंग्स ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प बचता है। सीनियर चेस्ट फिजिशियन डॉ. केवल कृष्ण डंग ने कहा कि कबूतर की बीट और उसके पंख में थर्मोफिलिक एक्टिनोमाइ साइटिस जैसे कीटाणु होते हैं, जो फेफड़ों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
कबूतर पालने वालों या जिनकी बालकनी में कबूतर आते हैं, उन्हें एलर्जी का न्यूमोनिया होने का अधिक खतरा होता है। यह रोग फेफड़ों की झिल्ली और श्वास नलियों को प्रभावित करता है, जिससे सांस में तकलीफ और खांसी होती है। यदि इसका तुरंत इलाज नहीं किया गया तो फेफड़े गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं। प्रारंभिक लक्षणों में खांसी और बुखार शामिल होते हैं, जो टीबी के लक्षणों से मिलते-जुलते हैं।
भारत में बच्चों में यह बीमारी बहुत कम देखी जाती है, लेकिन पिछले वर्ष 10 वर्षीय बच्ची का मामला सामने आया था, जो मेरे करियर में पहला मामला था।


