नीमच भाजपा में पवन पाटीदार की ताजपोशी के बाद गुटबाज़ी का तूफ़ान

Tina Chouhan

मध्य प्रदेश भाजपा कमेटी द्वारा पूर्व जिलाध्यक्ष पवन पाटीदार को ओबीसी मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद नीमच की भाजपा राजनीति में एक बार फिर गुटबाज़ी की पुरानी खाई गहरी होती नज़र आ रही है। सतह पर बधाइयों और स्वागत की मुस्कान है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अंदरखाने असंतोष और वर्चस्व की लड़ाई का ‘तूफ़ान’ फिर सक्रिय हो गया है। 23 अक्टूबर 2025 को जैसे ही पाटीदार के नाम की घोषणा हुई, राजनीतिक समीकरणों में हलचल मच गई।

वर्ष 2010 में जिला पंचायत सदस्य से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले पाटीदार वंदना खंडेलवाल से पहले पाँच वर्ष तक भाजपा जिलाध्यक्ष रहे हैं। यह वह दौर था जब नीमच की राजनीति में गुटीय शक्ति प्रदर्शन, पोस्टर वार, लोकार्पण बोर्डों से नाम हटाने और यहां तक कि सड़क पर तनातनी तक खुलेआम दिखी थी। उनकी खींचतान न सिर्फ विधायक दिलीप सिंह परिहार से रही, बल्कि जावद विधायक ओमप्रकाश सकलेचा और मनासा विधायक अनिरुद्ध माधव मारू के साथ भी चर्चा में रही।

कई कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें ‘भावी विधायक’ के रूप में प्रोजेक्ट किए जाने से तीनों विधायकों की नाराज़गी चरम पर पहुँच गई थी। “ओल्ड फ्रेम” पलटा, लेकिन टीस बाकी जिलाध्यक्ष पद से हटने के बाद लगभग 10 माह तक लो-प्रोफ़ाइल रहने वाले पाटीदार की ओबीसी मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी ने जैसे नीमच की राजनीति का “ओल्ड फ्रेम” पलट दिया। उन्हें कभी “कटप्पा गैंग” कहकर हाशिए पर धकेलने वाले नेता भी अब मुस्कान के साथ स्वागत करते नज़र आ रहे हैं।

समर्थकों के साथ पहुंचे पाटीदार शुक्रवार को भाजपा कार्यालय में आयोजित दीपावली मिलन समारोह एवं आत्मनिर्भर भारत सम्मेलन इसका पहला मंच बना। कार्यक्रम में सांसद सुधीर गुप्ता, जिलाध्यक्ष वंदना खंडेलवाल और विधायक दिलीप सिंह परिहार सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मौजूद रहे। पाटीदार समर्थकों के साथ पहुंचे और उन्होंने संबोधन भी दिया। आधिकारिक प्रेस नोट ने बढ़ाई हलचल हालांकि, कार्यक्रम के बाद जारी आधिकारिक प्रेस नोट ने गुटबाज़ी की टीस को फिर से चर्चा में ला दिया।

प्रेस नोट में सांसद, जिलाध्यक्ष, विधायक और कार्यक्रम प्रभारी के वक्तव्यों को शामिल किया गया, लेकिन पवन पाटीदार का भाषण और उनकी उपस्थिति को उस महत्व से नहीं दर्शाया गया, जिसकी अपेक्षा की जा रही थी। राजनीतिक हलकों में इसे “नाम हटाओ, नाम छुपाओ” की पुरानी रणनीति की पुनरावृत्ति माना जा रहा है। ये कहते हैं सियासी जानकार राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि भले ही पवन पाटीदार अब प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका में आ गए हों, लेकिन नीमच में उन्हें अभी भी एक “गुट” ही समझा जा रहा है।

उनकी पदोन्नति के बाद पहले ही दिन से उनके “बोनी-बट्टा” (महत्व कम करने की कोशिश) का खेल शुरू कर दिया गया है। कुल मिलाकर, पवन पाटीदार की पदोन्नति ने नीमच भाजपा में पुरानी गुटबाज़ी की सुई को एक बार फिर चुभो दिया है, और ज़ाहिर है कि यह तूफ़ान आने वाले दिनों में और भी सतह पर दिखाई देगा।

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