नेपाल में जेनरेशन जेड का राजनीतिक उत्थान और संघर्ष

Tina Chouhan

जयपुर डेस्क। नेपाल इस समय एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल से गुजर रहा है। हाल ही में केपी शर्मा ओली सरकार द्वारा फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स (ट्विटर) समेत 26 सोशल मीडिया साइटों पर पाबंदी लगाने के बाद सड़क से संसद तक गुस्सा भड़क उठा। यह आंदोलन मुख्य रूप से जेनरेशन जेड यानी 1997 से 2012 के बीच पैदा हुई युवा पीढ़ी की अगुवाई में हुआ। इसे खूनी क्रांति कहा जा रहा है, जिसने अंतत: सरकार के पतन और सेना के हस्तक्षेप तक का रास्ता खोल दिया।

नेपाल में यह पहली बार नहीं है जब युवाओं की बड़ी भूमिका राजनीतिक परिवर्तन में देखी गई हो। लेकिन खास बात यह है कि इस बार आंदोलन की रीढ़ जेनरेशन जेड है। यह वही पीढ़ी है जो इंटरनेट और सोशल मीडिया की दुनिया में पली-बढ़ी है। मगर, नेपाल का अब भविष्य क्या होगा, ये अभी अधर में है। मगर, उससे पहले यह जानते हैं कि जेनरेशन जेड, वाई, एक्स, अल्फा, बीटा और बूमर्स क्या होते हैं, यह समझते हैं।

नेपाल में जेन जेड की भूमिका ने नेपाल में हालिया घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि जेनरेशन जेड सिर्फ उपभोक्ता समाज का हिस्सा नहीं है, बल्कि राजनीतिक परिवर्तन की ताकत भी है। सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाना जेनरेशन जेड के लिए अस्वीकार्य था। यह वह पीढ़ी है जो डिजिटल माध्यमों से जुड़ी रहती है, सूचना पाती है और अपने विचार व्यक्त करती है। यही कारण है कि इस पीढ़ी ने इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमला माना। नेपाल की राजनीति में युवाओं की भागीदारी पहले भी रही है।

2006 की जनआंदोलन (लोकतांत्रिक क्रांति) में मिलेनियल्स और जनरेशन की बड़ी भूमिका रही थी। लेकिन मौजूदा समय में जेनरेशन जेड ने नेतृत्व संभाल लिया है। विश्लेषकों का मानना है कि यह आंदोलन नेपाल के लोकतंत्र को नए सिरे से गढ़ सकता है। किन्हें कहा जाता है जेनरेशन जेड इनवेस्टोपीडिया के अनुसार, जेनरेशन जेड वे लोग हैं जिनका जन्म 1997 से 2012 के बीच हुआ। 2025 तक इनकी उम्र लगभग 13 से 28 वर्ष के बीच होगी। इन्हें डिजिटल नेटिव्स कहा जाता है क्योंकि ये इंटरनेट और सोशल मीडिया वाली दुनिया में बड़े हुए हैं।

भारत में जेनरेशन जेड की शुरूआत थोड़ी देर से मानी जाती है, यानी 1990 के दशक के अंत से 2010 के दशक के शुरूआती वर्षों तक। यह पीढ़ी मोबाइल और लैपटॉप प्रेमी है। सामाजिक जागरूकता और हाइब्रिड कार्य शैली को पसंद करती है। आज जेनरेशन जेड न सिर्फ नेपाल बल्कि पूरी दुनिया में बदलाव की ताकत बन चुकी है। इंटरनेशनल लेबर ऑगेर्नाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक जेनरेशन जेड दुनिया की लगभग 30% वर्कफोर्स का हिस्सा बन जाएगी। यह आंकड़ा बताता है कि आने वाले समय में यह पीढ़ी सामाजिक और आर्थिक नीतियों पर गहरा प्रभाव डालेगी।

पुरानी और नई पीढि़यों का क्रम बेबी बूमर्स (1946-1964): सबसे बुजुर्ग, पारंपरिक नौकरी और जीवनशैली वाले। जनरेशन एक्स (1965-1980): बूमर्स के बाद, वर्तमान में मिड-एज। मिलेनियल्स / जनरेशन (1981-1996): 2000 के दशक में नौकरी और परिवार संभालने वाली पीढ़ी। जनरेशन जेड (1997-2012): डिजिटल नेटिव्स, युवा और सोशल मीडिया में सक्रिय। जनरेशन अल्फा (2013-2024): पूरी तरह से 21वीं सदी के बच्चे। जनरेशन बीटा (2025-2039): आने वाले वे बच्चे जो एआई और ऑटोमेशन की दुनिया में जन्म लेंगे। भारत में जेनरेशन डेटा बेबी बूमर्स (1946-1964): लगभग 6-7% जनसंख्या। जनरेशन (1965-1980): लगभग 15% जनसंख्या। मिलेनियल्स (1981-1996): लगभग 27% जनसंख्या।

जनरेशन जेड (1997-2012): 25% यानी 37-40 करोड़। जनरेशन अल्फा (2013-2024): 34-35 करोड़ बच्चे। कौन से देश में सबसे ज्यादा जेन जेड आबादी 1. भारत: लगभग 374-377 मिलियन (37-38 करोड़) लोग जेनरेशन जेड से संबंधित हैं। इ’ङ्मङ्मेुी१ॅ और टूङ्रल्ल२ी८ जैसी रिपोर्टों के अनुसार यह संख्या 472 मिलियन तक बढ़ने की संभावना है। पूरे ग्लोबल जनरेशन जेड का 20% हिस्सा 2. चीन : लगभग 246 मिलियन, अन्य रिपोर्ट्स में यह आंकड़ा 385 मिलियन है। 3. इंडोनेशिया : करीब 69-75 मिलियन 4. नाइजीरिया : लगभग 68 मिलियन 5.

पाकिस्तान : करीब 67 मिलियन भविष्य तय करेंगी जनरेशन नेपाल में जेनरेशन जेड का आंदोलन यह साबित करता है कि आने वाली पीढि़यां केवल तकनीकी बदलाव ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक ढांचे को भी गहराई से प्रभावित करेंगी। भारत और नेपाल दोनों देशों में जेनरेशन जेड और अल्फा की भारी आबादी भविष्य के लोकतंत्र, कार्यबल और समाज की दिशा तय करेगी। यह दौर इस बात की याद दिलाता है कि पीढि़यां सिर्फ समय का हिसाब नहीं हैं, बल्कि हर पीढ़ी अपने साथ नई चुनौतियां लेकर आती है।

नेपाल की सड़कों पर आग और आक्रोश इसी बदलते समय का संकेत है। कौन है जनरेशन बीटा, यह भी जानिए जनरेशन बीटा 2025 से 2039 के बीच जन्म लेने वाले व्यक्तियों के समूह के बारे में बात करता है। एक ऐसी पीढ़ी जो जन्म से ही आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लनिंर्ग और ऑटोमशन से लैस है। युवा मिलेनियल्स और पुरानी जेनरेशन जेड के बच्चों का पालन-पोषण एक ऐसी दुनिया में होगा जहां डिजिटल और भौतिक क्षेत्र सहज रूप से विलीन हो जाएंगे।

पीढ़ी दर पीढ़ी वर्कफोर्स : बूमर से जेन जेड तक प्यू रिसर्च के अनुसार, 2016 में मिलेनियल्स वर्कफोर्स के मामले में सबसे बड़ी पीढ़ी बन गई। 2017 तक कार्यबल में 56 मिलियन मिलेनियल्स थे। उसके बाद 53 मिलियन जेनरेशन एक्स और 41 मिलियन बेबी बूमर्स थे। वास्तव में, 2018 तक, 29 प्रतिशत बूमर्स सक्रिय रूप से काम की तलाश में थे। यह एक ऐसी विसंगति है जो 1970 के दशक के बाद से नहीं देखी गई है। बाकी युवा पीढि़यों की बात करें तो कार्यबल में नौ मिलियन जेनरेशन जेडर्स थे।

आश्चर्यजनक रूप से साइलेंट जेनरेशन (बूमर्स से पहले पैदा हुए) के तीन मिलियन लोग भी काम करते थे।

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