भारत के लिए नए व्यापारिक अवसरों का उदय

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

नई दिल्ली। भारत के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दंडात्मक कार्रवाइयों के बीच व्यापारिक क्षेत्र में भारत के लिए अवसरों के नए द्वार खुले हैं। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत लगातार अटक रही है। उधर भारत ने यूरेशियाई आर्थिक संगठन से व्यापार की नई सम्भावनाएं तलाशनी शुरू की हैं। जबकि यूरेशियाई आर्थिक संगठन भी भारत से बड़े पैमाने पर व्यापार करने के लिए उत्सुक है। उधर अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय की ओर से अलग-अलग उत्पादों के लेन-देन पर चर्चा के लिए तय दल को भेजने में काफी देरी की जा रही है।

इतना ही नहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त टैरिफ तक लगा दिया है। ऐसे में दोनों देशों का कारोबार अगले कुछ महीनों में कम होने की आशंका जताई गई है। हालांकि, भारत ने अमेरिका से तनाव के बीच अपने कारोबार का दायरा बढ़ाने की कोशिशें जारी रखी हैं। यूरोप और एशिया के मुहाने पर बसे देश हैं यूरेशियाई आर्थिक संगठन के सदस्य: यूरेशियाई आर्थिक संगठन में आने वाले देशों में मुख्यत: वे देश शामिल हैं, जो कि यूरोप और एशिया के मुहाने यानी यूरेशिया क्षेत्र पर स्थित हैं।

यह संगठन 2014 में कजाखस्तान में हुई एक संधि के जरिए अस्तित्व में आया था। जनवरी 2015 से यह संगठन लगातार आपसी कारोबार में शामिल रहा है। रूस, अर्मेनिया, बेलारूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान के साथ कुछ और देश इस संगठन में शामिल हैं। वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, 6.5 ट्रिलियन डॉलर की सम्मिलित जीडीपी वाले यूरेशियाई आर्थिक संगठन के साथ मुक्त व्यापार समझौते से भारतीय निर्यातकों को नए बाजारों तक बढ़ने का मौका मिलेगा। साथ ही नए सेक्टर और भौगोलिक केंद्रों तक जाने की कोशिश पूरी होगी।

इससे गैर-बाजार अर्थव्यवस्थाओं में भारत व्यापार प्रतियोगिता का हिस्सा बनेगा और लघु, छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों के लिए यह फायदेमंद साबित होगा। एक तरह से देखा जाए तो यह संगठन यूरेशियन कस्टम्स यूनियन के वृहद स्वरूप के तौर पर देखा जाता है, जिसमें पहले रूस, बेलारूस और कजाखस्तान शामिल थे। इसकी स्थापना 2010 में हुई थी। इस समूह की स्थापना मुख्य तौर पर 2008 के वित्तीय संकट के मद्देनजर हुई थी, ताकि यूरेशियाई देश मिलकर अपनी आर्थिक स्थिति संभाल सकें, वह भी यूरोप की मदद के बिना।

अर्मेनिया के इस संगठन में शामिल होने के बाद इसे यूरेशियाई आर्थिक संगठन का नाम मिला। इस संगठन की वेबसाइट के मुताबिक, ईएईयू का मकसद सदस्य देशों के बीच उत्पाद, सेवा, पूंजी और श्रम के स्वतंत्र और मुक्त लेन-देन को जारी रखना है। इतना ही नहीं यह संगठन घरेलू स्तर पर भी कई सेक्टर्स में नीतियों को एक-जैसा बनाने की कवायद में जुटे हैं। तीन देशों को फिलहाल इस संगठन में पर्यवेक्षक बनाया गया है, हालांकि अजरबैजान को भी इसमें शामिल करने की चर्चाएं हुई हैं।

ब्रिटेन के बाद यूरोपीय संघ की भी भारत से तिजारत में दिलचस्पी: ब्रिटेन से कुछ समय पहले ही हुए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के बाद भारत ने अब यूरेशियाई आर्थिक संगठन से व्यापार समझौते पर बात शुरू कर दी है। दोनों पक्षों की तरफ से शनिवार को इसे लेकर नए ढंग से चर्चा हुई। भारत और यूरेशियाई संगठन ने एफटीए के तहत समझौते के लिए अपने प्रमुख बिंदुओं को भी तय कर लिया है।

ऐसे में माना जा रहा है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो कुछ वर्षों में ही भारत यूरेशियाई संगठन में अपने लिए नया बाजार बना सकता है, वह भी एफटीए के अंतर्गत। इसके साथ ही यूरोपीय संघ भारत से व्यापार बढ़ाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहा। खास तौर पर फ्रांस और जर्मनी की सरकारें भारत में नई संभावनाएं देख रही हैं। वहां के उद्योगपतियों की भी भारतीय बाजार में गहरी दिलचस्पी है।

Share This Article