बिहार में NDA ने प्रचंड बहुमत हासिल कर फिर से सत्ता में वापसी कर ली है। NDA को बिहार में 202 सीटें मिली हैं। वहीं महागठबंधन का हाल बेहाल है और वह 35 सीटों पर ही सिमट कर रह गया। NDA ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। यह कहना गलत नहीं होगा कि अब फिर से बिहार की कमान नीतीश कुमार के हाथ में आने वाली है। हालांकि उन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा, फिर भी वे सीएम पद के उम्मीदवार हैं।
नीतीश कुमार ने पिछले 30 सालों से विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है लेकिन फिर भी मुख्यमंत्री बनते हैं। बता दें कि सीएम बनने के लिए विधानसभा का सदस्य होना जरूरी नहीं है। नीतीश विधानसभा में अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के प्रचार-प्रसार में उतरते हैं लेकिन खुद विधानसभा की जगह विधान परिषद का चुनाव लड़ना पसंद करते हैं। अगर कोई विधान परिषद का सदस्य है तो वो सीएम पद का उम्मीदवार हो सकता है। हमारे देश के कुछ राज्यों में विधान मंडल के 2 सदनों का प्रावधान है। उच्च सदन को विधान परिषद जबकि निम्न सदन को विधान सभा कहते हैं।
विधान परिषद के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था है। विधान परिषद की अधिकतम सदस्य संख्या उस राज्य की विधान सभा की सदस्य संख्या का 1/3 और न्यूनतम 40 निश्चित है। इसका अर्थ यह है कि संबंधित राज्य में परिषद सदस्य की संख्या, विधानसभा के आकार पर निर्भर करती है। हालाँकि, इसकी वास्तविक संख्या का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है। भारत में वर्तमान में केवल छह राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में विधान परिषद है। नीतीश कुमार ने आखिरी बार 1995 में विधानसभा चुनाव लड़ा था।
उन्होंने हरनौत सीट से समता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की थी। तब उन्होंने जनता दल के उम्मीदवार विश्वमोहन चौधरी को शिकस्त दी थी। इसके बाद उन्होंने कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल साल 2000 में सिर्फ 7 दिनों का था, लेकिन इसके बाद उन्होंने 2005 में बिना विधानसभा चुनाव लड़े बिहार की सत्ता प्राप्त की और बाद में विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य बने। वे 2005 से 2014 तक मुख्यमंत्री का पद संभाला।


