अब पिथौरागढ़ का रोतों गांव आया खतरे की जद में, साल 2013 से लगातार जारी है भूधंसाव

Sabal Singh Bhati
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पिथौरागढ़, 24 जनवरी ()। इन दिनों जोशीमठ बड़ी-बड़ी दरारें आने की वजह से सुर्खियों के बीच बना हुआ है। मगर उत्तराखंड में केवल जोशीमठ में ही इतनी दरारे आ रही हैं या केवल जोशीमठ ही खतरे की जद में है? बल्कि प्रदेश के कई गांव भू धंसाव और बड़ी बड़ी दरारों के कारण मिटने की कगार पर आ गए हैं।

उत्तराखंड में केवल जोशीमठ ही नहीं बल्कि सैकड़ों ऐसी जगह है जहां पर बड़ी-बड़ी दरारें आ रखी हैं। और लोगों की जान और उनके घर, मकान पूरे के पूरे गांव खतरे की जद में हैं।

दरअसल पिथौरागढ़ का भी एक ऐसा गांव है जो दरारों का दंश झेल रहा है। एक ऐसा गांव जिसमें पिछले 10 सालों से दरारे आ रही हैं मगर उसके बावजूद भी शासन-प्रशासन ने ना तो इसकी कोई सुध ली है और ना ही इसके लिए कोई भी कड़ी कार्यवाही की है।

हम बात कर रहे हैं तंतागांव रोतों गांव की जहां वर्ष 2013 से लगातार भूधंसाव जारी है। जोशीमठ के हालात देखकर छह हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर बसे इस गांव के ग्रामीण अब दहशत में आ गए हैं। इस गांव में वर्ष 2013 से लगातार भूधंसाव जारी है।

जमीन और मकानों में प्रतिवर्ष दरारें चौड़ी होती जा रही हैं। सरकार ने यहां का भूगर्भीय सर्वेक्षण तो कराया मगर उपचार नहीं कराया गया है। तंतागांव रोतों गांव में 2013 में भूगर्भीय हलचल ने चेतावनी दे दी थी। बता दें कि इस गांव के ऊपरी हिस्से में सुकल्या जलस्रोत का पानी रिसकर गांव की भूमि और मकानों के नीचे बहने लगा। इसी के साथ भूसाव होने लगा और मकानों में दरारें आने लगी।

साल 2019 में भूगर्भ अधिकारी ने स्थल का निरीक्षण किया और खतरा बताया। ग्रामीण लगातार मांग करते रहे हैं, लेकिन प्रशासन चुप्पी साधे रहा। बहुत विरोध के बाद सुकल्या स्रोत के पानी की समुचित निकासी के लिए 2020 में 35.44 लाख रुपये का इस्टीमेट तैयार किया गया। मगर आज तक इस पर भी कोई कार्य नहीं हुआ है। इस प्रस्ताव को विभागीय स्वीकृति तक नहीं मिली है।

ग्रामीणों का कहना है कि तंतागांव रोतों भी जोशीमठ जैसा बन चुका है, परंतु व्यवस्था इसकी सुध तक नहीं ले रही है। ग्रामीण संदीप कुमार का कहना है कि यह गांव नष्ट हो जाए और जमीनोजद हो जाए यह कहा नहीं जा सकता है।

स्मिता/एसकेके

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Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times