परसौना समिति में फर्जी पंजीकरण का मामला, निलंबित ऑपरेटर पर आरोप

vikram singh Bhati

परसौना: सहकारिता विभाग एक बार फिर फर्जी पंजीकरण के मामले में सवालों के घेरे में है। परसौना समिति में तैनात कंप्यूटर ऑपरेटर परमानंद पर एक किसान के पंजीकरण में दूसरे किसान की जमीन जोड़कर धोखाधड़ी करने का नया मामला सामने आया है। यह चौंकाने वाला है कि इसी ऑपरेटर को पहले गहिलरा समिति से फर्जीवाड़े के आरोप में तत्कालीन कलेक्टर के निर्देश पर निलंबित किया गया था। ताजा मामले के अनुसार, अनिल कुमार शाह नामक व्यक्ति के पंजीकरण में अनिल कुमार नामक एक अन्य व्यक्ति की जमीन जोड़ दी गई, जो जाति से ब्राह्मण हैं।

यह फर्जी पंजीकरण पहले 2024-25 में खम्हारडीह बगदरा समिति से और फिर 2025-26 में परसौना समिति से किया गया। इस फर्जी पंजीकरण के आधार पर सरकारी खरीद भी की गई, जिससे शासन को लाखों का राजस्व का नुकसान हुआ है। निलंबन के बाद भी गुपचुप नियुक्ति के अनुसार, कंप्यूटर ऑपरेटर परमानंद को पहले गहिलरा समिति में ग्रामीणों की शिकायत के बाद निलंबित किया गया था। जांच में आरोप सही पाए जाने पर तत्कालीन कलेक्टर ने कार्रवाई के निर्देश दिए थे।

हालांकि, कलेक्टर के तबादले के बाद सहकारिता विभाग के अधिकारियों के संरक्षण में परमानंद की नियुक्ति परसौना समिति में कर दी गई। आरोप है कि इस नियुक्ति के लिए न तो कोई विज्ञापन जारी किया गया और न ही किसी भर्ती प्रक्रिया का पालन हुआ। एक निलंबित और दागी कर्मचारी को दोबारा उसी पद पर नियुक्त किए जाने से विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। कैसे होता है फर्जीवाड़ा? ऑपरेटर की कार्यप्रणाली बेहद चालाक है। वह मिलते-जुलते नामों का फायदा उठाता है और पंजीकरण करते समय पूरा नाम या उपनाम नहीं लिखता।

इससे अधिकारी आसानी से फर्जीवाड़े को पकड़ नहीं पाते। अनिल शाह के मामले में भी यही हुआ, जहां ‘अनिल कुमार’ के नाम की जमीन को ‘अनिल शाह’ के खाते में जोड़ दिया गया। यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी एक मामले का खुलासा हुआ था, जिसमें पूजा शाह के पंजीकरण में पिता/पति का नाम बदलकर शर्मा परिवार की जमीन जोड़ दी गई थी, और उस पर भी सरकारी खरीद की गई थी।

एक साल से जांच लंबित, नहीं हुई कार्रवाई इस मामले की शिकायत दोबारा तत्कालीन कलेक्टर तक पहुंची, जिन्होंने जांच का जिम्मा सहकारिता विभाग के अधिकारी पी.के. मिश्रा को सौंपा था। लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी न तो जांच पूरी हुई और न ही किसी दोषी पर कोई कार्रवाई की गई। इस बीच, फर्जी पंजीकरण पर लाखों का भुगतान भी कर दिया गया, जो सीधे तौर पर सरकारी खजाने को नुकसान है। यह मामला प्रशासन और सहकारिता विभाग के बीच मिलीभगत की ओर भी इशारा करता है।

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Vikram Singh Bhati is author of Niharika Times web portal