गुजरात में पीएम मोदी ने पांडोरी माता के दर्शन किए और परियोजनाओं का उद्घाटन किया

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

नर्मदा। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद आज पीएम मोदी अपने गृह राज्य गुजरात के दौरे पर हैं, जहां उन्होंने धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती समारोह में हिस्सा लिया। जानकारी के अनुसार, पीएम मोदी आज 9,700 करोड़ रूपए की कई परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाएंगे। इसके साथ ही, वे बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की भी समीक्षा करेंगे। नर्मदा में पीएम मोदी का रोड शो हुआ, जिसमें उन्होंने गुजरात के नर्मदा जिले में आम जनता को संबोधित किया। इस दौरान उनके प्रशंसकों ने उन पर फूल बरसाकर उनका स्वागत किया।

मोदी ने देवमोगरा धाम में पांडोरी माता के दर्शन किए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को गुजरात के नर्मदा जिले की अपनी यात्रा के दौरान प्रसिद्ध याहामोगी देवमोगरा धाम में पांडोरी माता के दर्शन किए। उन्होंने मंदिर में विधि-विधान से पूजा-अर्चना और आरती की। इससे पहले, सड़क के दोनों ओर खड़े लोगों ने लोकनृत्य के माध्यम से हाथों में तिरंगा लिए उनका भव्य स्वागत किया। सतपुड़ा पर्वतमाला में प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित यह मनमोहक धाम आदिवासी समाज के लोगों की आस्था का केन्द्र है।

नर्मदा जिले की सागबारा तहसील के देवमोगरा में आदिवासियों की कुलदेवी पांडोरी माता का मंदिर है। यहां गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान के आदिवासी समुदाय के लोग याहामोगी पांडोरी की कुलदेवी के रूप में अपार श्रद्धा-आस्था तथा भक्ति के साथ पूजा करते हैं। इस पवित्र हेला दाब की अनूठी महिमा रही है। हजारों वर्ष पूर्व जब इस प्रदेश में भीषण अकाल पड़ा था, तब पांडोरी माताजी ने देवमोगरा धाम पर स्वयं वास किया था।

ऐसे संकट की घड़ी में प्रजापालक गोर्या कोठार ने आवश्यक अन्न का वितरण करना शुरू किया, लेकिन आगे चलकर उनके अन्न भंडार भी खाली होने लगे। तब उनकी पालक पुत्री याहा पांडोरी ने अन्न वितरण का कार्य संभाला। तब से आज तक अनाज के भंडार कभी खाली नहीं हुए हैं। सागबारा तहसील के देवमोगरा गांव में स्थित इस मंदिर में भक्त माताजी के चरणों में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ अपनी समस्याओं का निवारण प्राप्त करने के लिए आते हैं। मान्यता है कि माताजी के चरणों में जो भी दु:खी व्यक्ति आता है, वह हंसता हुआ वापस लौटता है।

देवमोगरा में हर वर्ष महाशिवरात्रि पर एक भव्य गढ़ यात्रा आयोजित की जाती है। इस यात्रा में माताजी को गढ़ में प्राकृतिक झरने में स्नान कराया जाता है। मेले के दौरान माता के प्रांगण में स्थित काकड़ के पेड़ पर एक ही रात में फूल आ जाते हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि जिस दिशा में सबसे ज्यादा फूल हों, उस दिशा में खेतीबाड़ी का काम अच्छा होगा। प्रतिवर्ष माघ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तथा महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व से लगातार पांच दिनों तक लगने वाला यह मेला आदिवासी लोक संस्कृति का अनूठा दर्शन कराता है।

इस मंदिर में बाईं ओर श्यामवर्णी महाकाली माता की मूर्ति के दर्शन भी होते हैं। आदिवासी समुदाय अपनी परंपरा का पालन करता है, जिसमें वे नयी फसल को बांस की टोकरी में रखते हैं और पूजा सामग्री की हिजारी बांधकर उसे सिर पर रखकर यात्रा पर निकलते हैं।

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