लखनऊ। रविवार 7 दिसंबर को चंद्र ग्रहण के साथ पितृपक्ष-25 का समापन होगा, जबकि सूर्य ग्रहण 21 को होगा। यह एक दुर्लभ संयोग है जो एक शताब्दी बाद हुआ है। कोतवालेश्वर महादेव मंदिर के महंत विशाल गौड़ के अनुसार, पितृपक्ष में दूसरा ग्रहण एक विशेष घटना है। श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण के माध्यम से पितरों को विदा किया जाता है। ज्योतिष गणना के अनुसार, सर्व पितृ अमावस्या यानी 21 सितंबर को साल का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण लगेगा, जो भारत में दिखाई नहीं देगा। इसके लिए सूतक भी मान्य नहीं होगा।
सूर्य ग्रहण रात 10 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगा और भारत में सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगा। महंत ने बताया कि पितृ पक्ष में पितरों के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किए जाते हैं। पीपल के पेड़ पर जल और काले तिल चढ़ाना, घर के दक्षिण दिशा में पितरों की तस्वीर लगाकर उनका सम्मान करना, नियमित रूप से शिवलिंग पर जल और काले तिल चढ़ाना, पितरों के नाम पर भोजन और दान-दक्षिणा करना और पितृ स्तोत्र का पाठ करना आवश्यक है। श्राद्ध पक्ष को भावना-प्रधान और क्रिया-प्रधान माना जाता है।
पितरों को याद करना और उनके लिए भक्ति भाव रखना महत्वपूर्ण है, लेकिन कर्म करना भी आवश्यक है। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अपने पितरों को याद करते हुए उनकी पसंद का भोजन बनाकर भोग लगाना, उनके नाम से दान करना और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। सूर्य ग्रहण के सूतक काल में बिना विघ्न के पितरों का श्राद्ध करने से जीवन में खुशहाली लाई जा सकती है।
ग्रंथों में कहा गया है कि यदि पितृ प्रसन्न रहें, तो वे भगवान से हमारी उन्नति और समृद्धि की कामना करते हैं, जिसका लाभ हमें इसी लोक में मिलता है। महंत ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान 15 दिनों तक पितृ पृथ्वी पर आते हैं। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। सही से श्राद्ध न करने पर पितरों की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती। पितृपक्ष में किया गया दान सर्वोत्तम माना जाता है। इस दौरान पूजा-पाठ करना और पितरों का स्मरण करना भी शुभ होता है।
पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या है, जो पितृपक्ष का समापन दिवस है। इस दिन साल का आखिरी ग्रहण भी लगेगा। चूंकि यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा, इसलिए जो लोग सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म करेंगे, उन्हें किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा। पितरों को जल देने से पहले सूर्य देव को पूर्व दिशा में अक्षत और रोली मिलाकर जल देना चाहिए। फिर जल में जौ मिलाकर उत्तर दिशा की ओर सप्तऋषियों को जल देना चाहिए। ऋषियों को जल देते समय जनेउ कंठी में धारण करना चाहिए।
इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तिल के साथ अपने पितरों को जल देना चाहिए। महंत विशाल गौड़ ने बताया कि पितृ पक्ष में मंदिर जाना अच्छा माना जाता है। पितृ पक्ष में अपने आराध्य की पूजा करनी चाहिए और पितरों के नाम से मंदिर में कुछ भेंट भी कर सकते हैं। पितृ लोग पितृ पक्ष के दौरान धरती पर वास करते हैं, ऐसे में इस दौरान पितरों की पूजा करना बेहद कल्याणकारी हो सकता है।