शिमला की जिला अदालत ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए हिमाचल प्रदेश वक्फ बोर्ड और संजौली मस्जिद समिति को दो महीने के भीतर मस्जिद के अनधिकृत हिस्से को गिराने का आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि निर्धारित समय में कार्रवाई नहीं की गई, तो नगर निगम स्वयं इस ढांचे को गिराएगा और खर्च दोनों संस्थाओं से वसूला जाएगा। यह आदेश अतिरिक्त जिला न्यायाधीश यजुवेंद्र सिंह ने पारित किया। इस निर्णय के बाद शहर में इस मुद्दे पर चर्चा तेज हो गई है।
अदालत ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार जिस भूमि पर संजौली मस्जिद स्थित है, वह वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं है, बल्कि राज्य सरकार के नाम पर दर्ज है। अदालत ने यह भी बताया कि यह भूमि शिमला नगर निगम की सीमा में आती है, इसलिए यहां किसी भी निर्माण पर नगर निगम अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं। न्यायाधीश ने कहा कि नगर निगम की अनुमति के बिना किए गए इस निर्माण को वैध नहीं माना जा सकता।
संजौली मस्जिद समिति के अध्यक्ष मोहम्मद लतीफ ने कहा है कि वे इस आदेश को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे, और यदि आवश्यक हुआ तो सर्वोच्च न्यायालय तक जाएंगे। अदालत ने वक्फ बोर्ड और समिति की अपीलें खारिज करते हुए नगर आयुक्त भूपेंद्र कुमार अत्री के 3 मई के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें मस्जिद की शेष दो मंजिलों—भूतल और पहली मंजिल—को गिराने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने कहा कि नगर आयुक्त का आदेश तथ्यों के उचित मूल्यांकन पर आधारित था और इसमें कोई अवैधता नहीं है।
जिला अदालत ने नगर निगम के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए बताया कि मस्जिद का अवैध निर्माण वर्ष 2010 में शुरू हुआ था। प्रारंभ में पुरानी मस्जिद को गिराकर भूतल का निर्माण किया गया, जो 117.37 वर्ग मीटर क्षेत्र में था। यह निर्माण ऐसे नक्शे पर आधारित था, जिसे नगर निगम ने कभी मंजूरी नहीं दी थी। बाद में चार और मंजिलें खड़ी कर दी गईं। अदालत ने कहा कि यह सब बिना वैध अनुमति के हुआ, इसलिए इसे अवैध माना गया।
इससे पहले मस्जिद समिति ने स्वेच्छा से ऊपरी तीन मंजिलों को हटाने की बात मानी थी और नगर आयुक्त की अदालत ने 5 अक्टूबर 2023 को उस अनुरोध को स्वीकार किया था। हालांकि, निगम ने अदालत को बताया कि केवल चौथी मंजिल हटाई गई है, जबकि दूसरी मंजिल के स्तंभ अब भी मौजूद हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि मस्जिद के निर्माण की अनुमति देने का अधिकार वक्फ बोर्ड के पास था, और नगर आयुक्त ने दोनों पक्षों को सुनने का पूरा अवसर दिया था। अदालत ने कहा कि अब आदेश का पालन अनिवार्य है।


