कहानी 1909 से शुरू होती है, जब मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद एक युवा अध्यापक ने दर्शनशास्त्र की कक्षाएँ लेना शुरू किया। यह वही अध्यापक था, जिसकी क्लास में भीड़ इतनी हो जाती कि छात्र खिड़कियों और दरवाजों से टिककर सुनते।
तीस वर्ष बाद, वही व्यक्ति कलकत्ता यूनिवर्सिटी का उपकुलपति, ऑक्सफर्ड का प्रोफेसर और विश्व-स्तरीय दार्शनिक बन चुका था।1952 में जब वह भारत के उपराष्ट्रपति बने, छात्रों ने पूछा—’अब आप शिक्षक दिवस क्यों नहीं मनाते?’ उनका उत्तर था—’अगर विद्यार्थी इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाएँ, तो यह मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा।’ यही दिन आज पूरे भारत में शिक्षक दिवस कहलाता है। आज का टेकअवे : वे पांच शिक्षाएं, जो डॉ. राधाकृष्णन के जीवन से मिलती हैं 1.
शिक्षा का असली लक्ष्य— आत्मा का उत्थानजानकारी किताबों से मिल सकती है, लेकिन शिक्षा का सार है— सोचने और जीने का नया दृष्टिकोण देना।2. संवाद ही सबसे बड़ा क्लासरूमकक्षा में सवाल पूछने और चर्चा करने का माहौल सबसे ज्यादा जरूरी है। यही छात्रों को जीवंत और जागरूक बनाता है।3. सरल भाषा, गहरे विचारजितना कठिन विषय हो, उसे उतना ही सहज ढंग से समझाना चाहिए। यही असली शिक्षक की पहचान है।4. पद नहीं, कर्म महान बनाता हैराष्ट्रपति पद पर पहुंचकर भी उन्होंने कहा— ‘क्यों न मुझे बस ट१.
ढ१ी२्रिील्ल३ कहें?’यही सिखाता है कि उपाधियां नहीं, आपके कर्म और आचरण ही आपकी महानता तय करते हैं।5. शिक्षक, राष्ट्र की आत्मा का निमार्ताअच्छे शिक्षक केवल छात्रों का भविष्य नहीं संवारते, बल्कि पूरे राष्ट्र का चरित्र गढ़ते हैं। शिक्षण के सूत्रराधाकृष्णन का कक्षा-कक्ष एक तरह का संवाद का मंच था।वे उपनिषदों और ग्रीक दर्शन को एक साथ पढ़ाते, और पूछते: ‘इनमें कौन सा सत्य स्थायी है?’वे कहते: ‘एजुकेशन इज नॉट एक्युमुलेशन ऑव इन्फॉर्मेेशन, बट ट्रांस्फोर्मेशन ऑव सॉल’उनके छात्र बताते हैं कि वे किसी भी जटिल विचार को गांव की कहानियों और रोजमर्रा की भाषा में उतार देते थे।
शिक्षण का फिलॉसफी’शिक्षा इ्न्फोर्मेशन नहीं, ट्रांस्फोर्मेशन है.’किताबें नहीं, सोचने की आदत देना ही उनका तरीका था।वे कहते थे, शिक्षक वही है जो ‘विद्यार्थी की आत्मा को छू ले।’ निजी घटनाएँ, जो आदर्श बनीं1936 में उन्हें ऑक्सफर्ड में ‘ईस्टर्न रिलीजन एंड एथिक्स’ की चेयर मिली। पश्चिमी विद्वानों ने पहली बार पूर्वी दर्शन को उसी स्तर पर सुना, जिस स्तर पर प्लेटो और अरस्तू को पढ़ाया जाता था।जब वे यूनिवर्सिटी पढ़ाते थे, तो कभी अपनी तनख्वाह का हिस्सा गरीब छात्रों की फीस में दे देते।क्यों अलग थे वे शिक्षक?राधाकृष्णन की खासियत यह थी कि वे ‘सोचने’ के लिए मजबूर करते थे।
वे विद्यार्थियों को किताब का उत्तर नहीं, बल्कि सवाल पूछने की आदत देते थे। यही कारण है कि उनके शिष्यों में वैज्ञानिक, राजनेता और लेखक—सब शामिल हुए। भारत का राष्ट्रपति जो जीवनभर सिर्फ शिक्षक रहा।टाइमलाइन: घटनाओं की तेज झलक1909: मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से पढ़ाई पूरी, अध्यापन की शुरूआत।1931: आंध्र यूनिवर्सिटी के उपकुलपति बने।1936: ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में ‘ईस्टर्न रिलीजन एंड एथिक्स’ की चेयर मिली।1952: भारत के उपराष्ट्रपति बने।1962: राष्ट्रपति पद संभाला, लेकिन कहा—’मैं अब भी एक शिक्षक हूँ।’1962 से आज तक: 5 सितम्बर को पूरा देश मनाता है शिक्षक दिवस।
क्लासरूम की कहानियाँकहा जाता है, उनकी कक्षाओं में जगह कम पड़ जाती थी। छात्र खिड़कियों और दरवाजों पर खड़े होकर सुनते। दर्शन जैसे कठिन विषय को वे रोजमर्रा की भाषा और गांव की कहानियों से जोड़ देते।