जयपुर। शिक्षा विभाग के सभी सरकारी स्कूलों में दीपावली तक रंग-रोगन और पेंटिंग के आदेश स्कूलों के लिए चुनौती बन गए हैं। शिक्षा विभाग ने इसके लिए न तो अलग से बजट की व्यवस्था की है और न ही कोई फंड उपलब्ध कराया है। बिना बजट के स्कूलों में रंग-रोगन कैसे होगा, यह सवाल प्रधानाध्यापकों और प्रधानाचार्यों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
माध्यमिक शिक्षा बीकानेर के निदेशक सीताराम जाट ने चार अक्टूबर को आदेश दिया कि रंग-रोगन विद्यार्थियों के विकास कोष से कराया जाए, लेकिन अधिकांश स्कूलों में यह कोष या तो मौजूद नहीं है या बहुत कम है, जिससे स्कूलों के अन्य जरूरी खर्च जैसे पानी और बिजली के बिल का भुगतान भी मुश्किल हो रहा है। विद्यार्थियों के विकास कोष की कमी के कारण शिक्षा विभाग ने पंचायतीराज विभाग को शामिल किया, लेकिन पंचायतों के पास भी फंड की कमी के कारण समस्या जस की तस बनी हुई है। प्रधानाध्यापक और प्रधानाचार्य सरपंचों के पास जाकर मदद मांग रहे हैं।
प्राथमिक विद्यालयों में एक से पांच तक के विद्यार्थी नि:शुल्क पढ़ाई करते हैं, इसलिए विकास कोष में पैसा नहीं आता। उच्च प्राथमिक विद्यालयों में भी आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती, जिससे विकास कोष शून्य रहता है। सीनियर सैकण्डरी विद्यालयों में विद्यार्थियों से सौ से लेकर 150 रुपए तक वसूले जाते हैं, लेकिन यह राशि भी केवल पानी और बिजली के बिलों के भुगतान के लिए होती है। ऐसे में अधिकांश स्कूलों में विकास कोष में पैसे की कमी है।
सीनियर सैकण्डरी स्कूलों में रंग-रोगन के लिए टेंडर की आवश्यकता होती है, और इतने कम समय में टेंडर कैसे निकाला जा सकता है? इस तरह के कार्य के लिए पहले प्रशासनिक, फिर तकनीकी और अंत में वित्तीय स्वीकृति की आवश्यकता होती है। विभाग ने आदेश तो जारी किए हैं, लेकिन बिना बजट के रंग-रोगन कैसे संभव है? सीनियर सैकण्डरी स्कूलों में रंग-रोगन में 15-20 दिन लगते हैं। अगर सरकार वास्तव में रंग-रोगन कराना चाहती है, तो इसे ग्रीष्मकालीन अवकाश में कराना चाहिए। शिक्षा विभाग के दबाव में प्रधानाध्यापक और प्रधानाचार्य अपने पैसे से रंग-रोगन करा रहे हैं।
महावीर सिहाग, प्रदेशाध्यक्ष, राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत ने कहा कि स्कूलों में विकास कोष से रंग-रोगन कराना चाहिए। यदि विकास कोष नहीं है, तो पंचायतीराज विभाग को भी शामिल किया गया है। स्कूलों में कार्य शुरू हो चुका है। -सीताराम जाट, निदेशक माध्यमिक शिक्षा, राजस्थान। रफीक पठान, मुख्य प्रवक्ता, सरपंच संघ राजस्थान ने कहा कि सीनियर सैकण्डरी स्कूल में 15 कमरे होते हैं, और दस हजार से अधिक के काम के लिए टेंडर जरूरी है, बिना टेंडर काम कैसे होगा?


