घर केवल ईंटों का ढांचा नहीं होता, बल्कि यह हमारी भावनाओं, रिश्तों और सपनों का केंद्र होता है। हालांकि, कभी-कभी सब कुछ होते हुए भी घर में शांति, सुख और समृद्धि नहीं टिक पाती। लोग लगातार परेशानियों का सामना करते हैं और समझ नहीं पाते कि समस्या कहाँ है। इस स्थिति में वास्तु शास्त्र एक गहरी और अदृश्य वजह की ओर इशारा करता है, जिसे भूमि दोष कहा जाता है। कई परिवारों में देखा गया है कि नया घर बनने के बाद भी समस्याएँ अचानक बढ़ जाती हैं, जैसे बीमारी, दुर्घटनाएँ, आर्थिक घाटा, मनमुटाव और तनाव।
यह केवल संयोग नहीं होता। भूमि की ऊर्जा और प्रकृति सीधे परिवार के जीवन को प्रभावित करती है। भूमि दोष क्या है? भूमि, जिसे वेदों में धरा, वसुंधरा और भूमि देवी कहा गया है, हर घर की नींव होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, भूमि भी जीवित ऊर्जा से भरी होती है। इसकी अपनी अवस्था, दिशा, प्रकृति और स्पंदन होते हैं। जब यह ऊर्जा असंतुलित हो जाती है, तो उसे भूमि दोष कहा जाता है। भूमि दोष प्राकृतिक, ज्योतिषीय, वास्तुजनित और कर्मजनित चार कारणों से उत्पन्न हो सकता है।
घर या प्लॉट खरीदने से पहले भूमि की अवस्था पर ध्यान न देने से आगे चलकर बड़ी परेशानियाँ खड़ी हो सकती हैं। भूमि की अवस्थाएँ और उनका महत्व जागृत भूमि सबसे शुभ मानी जाती है, जहाँ परिवार में तेज़ प्रगति होती है। सुप्त भूमि सामान्य होती है, जिसमें थोड़ी बाधाएँ भी हो सकती हैं। मृत भूमि सबसे अशुभ मानी जाती है, जहाँ आर्थिक संकट, दुर्घटनाएँ और रिश्तों में तनाव होता है। भूमि दोष के प्रमुख लक्षणों में पालतू जानवरों का बीमार होना, घर में लगातार दुर्घटनाएँ, बीमारी और मानसिक तनाव का बढ़ना, आर्थिक तंगी और परिवार में कलह शामिल हैं।
भूमि दोष के कई कारण हो सकते हैं, जैसे भूमि पर पहले किए गए पाप कर्म, गलत दिशा में खुदाई, और आस-पास के मंदिर या श्मशान का प्रभाव। भूमि दोष से बचने के उपायों में भूमि की मिट्टी बदलवाना, विश्वकर्मा पूजा, भूमि पूजन, हवन और जल तत्व का संतुलन शामिल हैं।


