सिवाणा का किला – मारवाड़ के पर्वतीय दुर्गों में सिवाणा के किले का विशेष महत्त्व है। यह किला जोधपुर से लगभग 60 मील दक्षिण में पर्वत शिखरों के मध्य अवस्थित है। जालौर से इसकी दूरी 30 मील है। 1 ज्ञात इतिहास के अनुसार सिवाणा के इस प्राचीन दुर्ग का निर्माण वीरनारायण पंवार ने दसवीं शताब्दी ईस्वी में करवाया था।
वह प्रतापी पंवार शासक राजा भोज का पुत्र था। उस समय पंवार बहुत शक्तिशाली थे और उनका एक विशाल क्षेत्र पर आधिपत्य था, जिसमें मालवा, चन्द्रावती, जालौर, किराडू, आबू सहित अनेक प्रदेश शामिल थे। तदनन्तर सिवाणा जालौर के सोनगरा चौहानों के अधिकार में आ गया। ये सोनगरे बहुत वीर और प्रतापी हुए तथा इन्होंने ऐबक और इल्तुतमिश सरीखे शक्तिशाली गुलावंशीय सुलतानों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और अपनी स्वतन्त्रता अक्षुण्ण बनाये रखी।
लेकिन सिवाणा को सबसे प्रबल चुनौती मिली सुलतान अलाउद्दीन खिलजी से। अलाउद्दीन के आक्रमण के समय सिवाणा का अधिपति सातलदेव था जो जालौर के शासक कान्हड़देव का भतीजा था। सिवाणा पर अलाउद्दीन की सेना का पहला आक्रमण 1305 ई० में हुआ तब वीर सातल और सोम (संभवत: उसका पुत्र सोमेश्वर ) नै कान्हड़देव की सहायता से खिलजी सेना का डटकर मुकाबला किया।
विजय की कोई आशा न देखकर खिलजी सेना को घेरा उठाने के लिए बाध्य होना पड़ा। राजपूतों की इस प्रारंभिक सफलता और अपनी पराजय से क्षुब्ध होकर अलाउद्दीन खिलजी ने 1310 ई० के लगभग स्वयं एक विशाल सेना लेकर सिवाणा पर चढ़ाई की और दुर्ग को जा घेरा। जैसा कि डॉ० दशरथ शर्मा ने लिखा है-
In June 1310 A. D. Alaudin himself marched against Siwana, with one of the biggest armies that he had mustered so far.
सातलदेव ने बड़ी वीरता के साथ उसका मुकाबला किया तथा शत्रु शिविरों पर छापामार आक्रमणों के साथ किले पर से ढेकुली यन्त्रों के द्वारा निरन्तर पत्थर बरसाये और शत्रु सेना के हौसले पस्त कर दिये। लेकिन इस बार अलाउद्दीन सिवाणा पर अधिकार करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ था, अत: उसने हर संभव उपाय का आश्रय लिया।
उसने एक विशाल और ऊँची पाशीब (चबूतरा) बनवायी जिसके द्वारा सेना दुर्ग तक पहुँचने में सफल हो गयी । अलाउद्दीन ने वहाँ के प्रमुख भांडेलाव तालाब को गोमांस से दूषित करवा दिया। कहा जाता है कि इसमें पंवार नामक व्यक्ति ने विश्वासघात किया। अब दुर्ग की रक्षा का कोई उपाय न देख वीर सातल-सोम सहित अन्य क्षत्रिय योद्धा केसरिया वस्त्र धारण कर शत्रु सेना पर टूट पड़े तथा वीरगति को प्राप्त हुए ।
सिवाणा का किला (सिवाणा दुर्ग)
राजपूतों की इस अप्रतिम वीरता और शौर्य से प्रभावि अलाउद्दीन का आश्रित लेखक अमीर खुसरो लिखता है-2 “वे राजपूत गजब के बहादुर और साहसी थे। उनके सिर के टुकड़े-टुकड़े हो गये फिर भी वे युद्धस्थल पर अड़े रहे। ” रबी उल अव्वल की 23 मंगलवार को खिलजी सैनिकों ने सातलदेव का क्षत विक्षत शव अलाउद्दीन के सामने प्रस्तुत किया, जिसने दुर्ग को खैराबाद का नाम दिया। लेकिन अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के साथ ही सिवाणा पर उसके वंश का आधिपत्य समाप्त हो गया।
तत्पश्चात् सिवाणा पर राव मल्लीनाथ राठौड़ के भाई जैतमाल और उसके वंशजों का आधिपत्य रहा। 1538 ई० में राव मालदेव ने सिवाणा के तत्कालीन अधिपति राठौड़ डूंगरसी को पराजित कर इस दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। मालदेव के आधिपत्य का सूचक एक शिलालेख वहाँ किले के भीतर आज भी विद्यमान है। राव मालदेव ने सिवाणा की रक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया तथा वहाँ परकोटे (शहरपनाह) का निर्माण करवाया ।
अपने दुर्भेद्य स्वरूप के कारण सिवाणा का दुर्ग संकटकाल में मारवाड़ के राजाओं का शरण स्थल रहा। राव मालदेव ने गिरी सुमेल के युद्ध के बाद शेरशाह की सेना के द्वारा पीछा किये जाने पर सिवाणा के किले में आश्रय लिया था। तदनन्तर उनके यशस्वी पुत्र चन्द्रसेन ने सिवाणा के किले को केन्द्र बनाकर शक्तिशाली मुगल बा अकबर की सेनाओं का लम्बे अरसे तक प्रतिरोध किया। मुगल आधिपत्य में आने के बाद अकबर ने राव मालदेव के एक पुत्र रायमल को सिवाणा दिया।
लेकिन कुछ अरसे बाद ही रायमल की मृत्यु हो गयी और सिवाणा उसके पुत्र कल्याणदास (कल्ला) के अधिकार में आ गया। इस राठौड़ वीर कल्ला रायमलोत की वीरता और पराक्रम से सिवाणा को जो प्रसिद्धि और गौरव मिला उससे इतिहास के पृष्ठ आलोकित हैं।
उक्त अवसर उस समय उपस्थित हुआ जब बादशाह अकबर कल्ला राठौड़ से नाराज हो गया और उसने जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह को आदेश दिया कि वह कल्ला को हटाकर सिवाणा पर अधिकार कर ले। अकबर की नाराजगी का कारण यह बताया जाता है कि कल्ला राठौड़ ने एक बार मामूली सी बात पर अप्रसन्न होकर बादशाह के एक छोटे मनसबदार को मार दिया था। वीर विनोद में इसका कारण दूसरा बताया गया है। उक्त ग्रन्थ के अनुसार-
मोटा राजा उदयसिंह ने शहजादे सलीम के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया था। कल्ला इस विवाह सम्बन्ध को अनुचित व अपमानजनक मानता था और उदयसिंह से झगड़ा करता था। वास्तविक कारण चाहे जो भी रहा हो, मोटा राजा उदयसिंह ने शाही सेना की सहायता से सिवाणा पर आक्रमण किया।
कल्ला राठौड़ ने स्वाभिमान और वीरता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मोटा राजा उदयसिंह की सेना के साथ भीषण युद्ध किया और लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। कल्ला की पत्नी हाड़ी रानी (बूँदी के राव सुरजन हाड़ा की पुत्री) ने दुर्ग की ललनाओं के साथ जौहर का अनुष्ठान किया। कल्ला रायमलोत की वीरता और पराक्रम से सम्बन्धित अनेक दोहे हैं। उदाहरणत: –
किलो अणरवलो यूं कहे, आव कला राठौड़
मो सिर उतरे मेहणो, तो सिर बांधै मौड़ ।
सिवाणा का किला वीरता और शौर्य की रोमांचक घटनाओं का साक्षी सिवाणा का किला काल के क्रूर प्रवाह को झेलता हुआ आज भी शान से खड़ा है।
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