जयपुर। रविवार रात जब पूरा शहर चैन की नींद सो रहा था, तब प्रदेश के सबसे बड़े जयपुर के एसएमएस अस्पताल के ट्रोमा सेंटर की दूसरी मंजिल पर मौत ने दस्तक दी वो भी इतनी खामोशी से कि मरीजों को चीखने का और अपनों को बचाने का भी वक्त नहीं मिला। आईसीयू में भर्ती मरीजों के शरीर मशीनों से जुड़े थे, लेकिन उनकी सांसें अब भी जिंदा थीं। अचानक शॉर्ट सर्किट से आग लगी, धुआं भरता गया और एक-एक कर आठ जिंदगियां बुझती चली गईं।
बाहर खड़े परिजन दरवाजे पीटते रहे कोई मां को आवाज देता रहा, कोई भाई ड्रिप निकालने की जद्दोजहद करता रहा। अस्पताल का स्टाफ, जो उस वक्त फरिश्ता बन सकता था, पीछे हट गया। और वो लोग जिनका इलाज चल रहा था वो जिंदा जलते आईसीयू में मौत से हार गए। अस्पताल के ट्रोमा सेंटर के आईसीयू में भर्ती मरीजों के परिजन इस उम्मीद के साथ आए थे, कि उनका यहां बेहतर इलाज होगा, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि अस्पताल के जिम्मेदारों की अनदेखी और लापरवाही से वे उनकी लाश लेकर जाएंगे।
सेंटर के आईसीयू में रविवार की देर रात लगी आग से आठ मरीजों की मौत हो गई। मृतकों के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। उनकी मानें तो शॉर्ट सर्किट के तुरंत बाद आग पर काबू पा लिया जाता, तो इतना बड़ा हादसा नहीं होता, लेकिन जिम्मेदार लोग करीब आधा घंटे तक केवल तमाशा देखते रहे, जब तक आग ने विकराल रूप धारण कर लिया। मां की छुट्टी होने वाली थी। सब खुश थे। लेकिन आग लगने पर स्टाफ ने हमें कहा कुछ नहीं होगा, खिड़की खोल दो। जब धुआं फैला तो सब भाग गए।
भाई शेरू मां को बचाने दौड़ा पर उसे समझ नहीं आया कि ड्रिप कैसे हटाएं, नलकी कैसे निकालें, अस्पताल वाले अगर भागने के बजाय हमारे साथ खड़े होते, तो शायद मां आज जिंदा होती। -जोगेंद्र, मृतका रुकमणी का बेटा मेरी पत्नी की हड्डी टूट गई थी। इसका इलाज ट्रॉमा आईसीयू में करवा रहे थे। चिकित्सक ने उन्हें सुबह ही छुट्टी देने को कहा था, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। घटना के तत्काल बाद कुछ मरीज और परिजनों ने वार्ड ब्वॉय को बताया था, लेकिन उन्होंने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।
वे रात से अस्पताल के बाहर बैठकर पत्नी का शव मिलने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन उन्हें शव नहीं मिला। -पूरन सिंह, मृतका कुसुमा देवी के पति खेत से लौटने के दौरान श्रीनाथ हादसे में घायल हो गए थे। भरतपुर में चार दिन उपचार के बाद उन्हें जयपुर रैफर किया गया था। वे घटना के समय आईसीयू के बाहर ही थे। अफरातफरी के बीच आईसीयू में पहुंचे तो धुएं के कारण उनकी खुद की हालत खराब हो गई। उन्होंने श्रीनाथ को बैड सहित ही बाहर खींचा, लेकिन बैड भी बीच में फंस गया।
-अशोक गुर्जर, मृतक श्रीनाथ गुर्जर के भाई वार्डों में राख हो चुके बेड और उपकरण : सुबह आईसीयू के जले बेड और उपकरणों हादसे की भयावहता को दर्शा रहे थे। टूटी खिड़कियों के बिखरे कांच, छत पर आग के कारण गलकर लटकी फॉल्स सीलिंग, धुएं और आग के कारण गला हुए प्लास्टिक के आइटम, जलकर काले हुए और पानी के कारण गीले पड़े बैड, काली दीवारें रात की कहानी कहती नजर आई। इस दौरान सुरक्षा कारणों से किसी को आईसीयू में जाने की परमिशन नहीं दी गई।
ऐसे में कई बार मीडियाकर्मियों को भी कवरेज में परेशानी का सामना करना पड़ा। वहीं आग का असर आईसीयू ही नहीं बल्कि पूरे फ्लोर पर दिखाई दिया। इसके कारण सामने की ओर बने ऑपरेशन थिएटर को भी बंद कर दिया गया और जिन मरीजों को ऑपरेशन होना था उन्हें सात दिन बाद के लिए कह दिया गया। इसमें भी कई मरीज जिनका एक दिन पहले ही ऑपरेशन हुआ था वे बिना छुट्टी लिए ही अस्पताल से चले गए। रात में भी आईसीयू से निकाले गए मरीजों को अन्य वार्डों में शिफ्ट किया गया था।
फायरकर्मी बोले : खिड़की के कांच उतारकर पानी की बौछारें मारी फायर विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि सूचना मिलते ही टीम मौके पर पहुंची। पूरे वार्ड में धुआं भर चुका था। अंदर जाने का कोई रास्ता नहीं था। ऐसे में बिल्डिंग की दूसरी ओर से खिड़की के कांच उतारकर पानी की बौछार की गई। आग पर काबू पाने में एक से डेढ़ घंटे का समय लगा। सभी मरीजों को बेड समेत बाहर सड़क पर शिफ्ट किया गया। आक्रोशित लोगों ने इन्हें ठहराया जिम्मेदार : इस घटना को लेकर मृतकों के परिजनों में काफी आक्रोश था।
उन्होंने वहां पहुंचे मंत्रियों के सामने भी इसे व्यक्त किया। परिजनों ने लापरवाही और अव्यवस्थाओं को लेकर चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर, प्रमुख चिकित्सा सचिव गायत्री राठौड़, चिकित्सा शिक्षा सचिव अंबरीश कुमार, अस्पताल के प्राचार्य डॉ. दीपक माहेश्वरी, अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुशील भाटी, अतिरिक्त अधीक्षक डॉ. प्रदीप शर्मा, न्यूरो सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. मनीष अग्रवाल, ट्रोमा सेंटर के नोडल अधिकारी डॉ. अनुराग धाकड़, बिजली कंपनी के एक्सईएन मुकेश सिंघल को जिम्मेदार ठहराया है।
जहरीली गैस तेजी से फैली तो बचा नहीं पाए : ट्रॉमा सेंटर के नोडल ऑफिसर और सीनियर डॉक्टर अनुराग धाकड़ ने बताया कि आईसीयू में 11 मरीज थे। इनमें से 5 को ग्राउंड स्टाफ ने बचा लिया। आईसीयू में धुआं और जहरीली गैस भर गई थी। हमारे पास खुद के अग्निशमन उपकरण थे। उनका इस्तेमाल किया। 5 मरीजों को जब तक निकालते, तब तक जहरीली गैस फैल गई तो अन्य मरीजों को बचा नहीं पाए। धुएं से भरे आईसीयू में घुटनों के बल घुसे पुलिसकर्मी : इस नरक के अंधेरे में कुछ लोग उम्मीद की लौ बनकर उतरे।
हैड कांस्टेबल हरिमोहन मीणा बताते हैं धुआं इतना था कि मोबाइल की लाइट भी बेअसर थी। ड्रेनेज लाइट लेकर घुटनों के बल घुसा और एक मरीज को बेड समेत खींचकर बाहर लाया। सामान्य नागरिकों ने भी दिखाई बहादुरी : गेट के बाहर दुकान चलाने वाली संतोष बताती हैं, अंदर चीख-पुकार थी। मैं दौड़कर ट्रोमा सेंटर पहुंची। मरीजों को नीचे लाने में मदद की। सोचा मेरी कोशिश से अगर किसी की जान बच जाए तो शायद किसी मां की गोद सूनी होने से बच जाए।