जयपुर डेस्क। दुनियाभर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उपयोग में तेजी से बढ़ोतरी के साथ इसकी बिजली खपत भी चिंता का विषय बन गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, बड़े आई मॉडल – जैसे chatGPT, Google Gemini- अरबों गणनाएं चलाने के लिए शक्तिशाली कंप्यूटरों और सुपरकंप्यूटरों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे बिजली की खपत सामान्य सर्वरों की तुलना में कई गुना अधिक होती है। इस संदर्भ में जोहो के फाउंडर श्रीधर वेम्बु ने इसे लेकर खतरनाक चेतावनी दी है।
श्रीधर वेम्बु ने हाल ही में एक्स पर अपने एक पोस्ट में चेताया है कि एआई मॉडल्स इतनी ज्यादा बिजली खा रहे हैं कि बिजली के बिल आसमान छू रहे हैं और इले्ट्रिरक ग्रिड टूटने के कगार पर हैं। उन्होंने बताया कि अमेरिका के एथेंस, जॉर्जिया में 2023 से अब तक बिजली की कीमतें 60% बढ़ गई हैं। इसकी वजह वहां लगे एआई डेटा सेंटर हैं। इस बारे में वेम्बु ने लिखा, भले ही हम सारे जीपीयूएस खरीद लें, हम बिजली का बिल नहीं भर सकते। हम घरों और फै्ट्रिरयों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते।
भारत में डेटा सेंटरों का बढ़ता बोझ श्रीधर वेम्बु का कहना है कि भारत को बहुत ज्यादा बिजली बचाने वाले एआई की जरूरत है। बता दें कि भारत में डेटा सेंटर की क्षमता 2024 में 1.2 गीगावाट थी, जो 2030 तक बढ़कर 5 गीगावाट तक हो सकती है। यह पांच गुना से भी ज्यादा बढ़ोतरी है। एआई का काम 2030 तक हर साल 40 से 50 टेरावाट बिजली प्रति घंटे खर्च कर सकता है।
उनके अनुसार यह इतनी बड़ी मात्रा है कि हमारा पावर सिस्टम, जो पहले से ही बढ़ती औद्योगिक और घरेलू मांग को पूरा करने के लिए दबाव में है और भी ज्यादा परेशानी में आ जाएगा। खपत कहां और कैसे: एआई मॉडल बहुत बड़े होते हैं एआई मॉडल में अरबों गणनाएं और पैरामीटर होते हैं। इनको चलाने के लिए सुपरकंप्यूटर या जीपीयू मशीनें इस्तेमाल की जाती हैं। ये मशीनें बहुत बिजली खाती हैं। उदाहरण के लिए: एक सामान्य लैपटॉप लगभग 100 वॉट बिजली लेता है, लेकिन एक बड़ा आई सर्वर मेगावॉट्स (10 लाख वॉट) बिजली खा सकता है।
ट्रेनिंग (सीखने) की प्रक्रिया बहुत भारी जब एआई को सिखाया जाता है, तो उसे बहुत ज्यादा डेटा और गणना करनी पड़ती है। ये प्रक्रिया कई हफ्तों या महीनों तक चलती है। इतने लंबे समय तक सर्वर चलने से बिजली की खपत बहुत बढ़ जाती है। साथ ही, इतनी हीट निकलती है कि उसे ठंडा करने के लिए भी बिजली लगती है। डेटा सेंटर 24 घंटे चलते हैं एआई के सर्वर कभी बंद नहीं होते हैं। वे दिन-रात चलते रहते हैं ताकि लोग किसी भी समय एआई का इस्तेमाल कर सकें।
इन सेंटरों में: ठंडा रखने के लिए एसी या कूलिंग सिस्टम चलते हैं। नेटवर्क और स्टोरेज सिस्टम भी हमेशा चालू रहते हैं। इससे बिजली की खपत और बढ़ जाती है। एआई का इस्तेमाल भी बिजली खाता है जब आप चैट जीपीटी जैसे एआई से सवाल पूछते हैं, तो हर जवाब के लिए भी बहुत सारी गणना करनी पड़ती है। एक एआई सवाल की बिजली खपत, एक गूगल सर्च से 10 से 100 गुना ज्यादा हो सकती है। एआई ज्यादा बिजली इसलिए खाता है क्योंकि उसे बहुत ज्यादा दिमागी काम करना पड़ता है और उसके कंप्यूटर हमेशा चालू रहते हैं।
एक सवाल का जवाब देने में कितनी बिजली लगती है, यह कई बातों पर निर्भर करता है 1. छोटे एआई मॉडल (साधारण चैटबॉट) अगर कोई छोटा सवाल-जवाब हो (जैसे नमस्ते, कैसे हो?), तो इसमें लगभग 0.001 से 0.01 वाट-घंटा बिजली लगती है। यह उतनी ऊर्जा है जितनी एक एलईडी बल्ब को 1 सेकंड जलाने में लगती है। 2. बड़े मॉडल (जैसे उँं३ॠढळ, ॠढळ-4 या ॠढळ-5) अगर जवाब थोड़ा लंबा और सोच-समझकर दिया जा रहा हो, तो इसमें लगभग 0.1 से 1 वाट-घंटा बिजली खर्च होती है।
यह उतनी ऊर्जा है जितनी एक मोबाइल फोन को 2-5 सेकंड चार्ज करने में लगती है। 3. अगर करोड़ों लोग एक साथ इस्तेमाल करें: तब कुल बिजली की खपत बहुत बड़ी हो जाती है। डस्रील्लअक, ॠङ्मङ्मॅ’ी और ट्रू१ङ्म२ङ्मा३ जैसे डेटा सेंटर हर दिन मेगावॉट-घंटों में बिजली खर्च करते हैं। (1 मेगावॉट-घंटा = 10 लाख वाट-घंटा) ब्लैकआउट का खतरारिपोर्ट्स के मुताबिक अगर स्वच्छ ऊर्जा की वृद्धि धीमी रही तो देश को हर साल 6 टेरावाट प्रति घंटे बिजली की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
इससे गर्मी की लहरों या एआई की ज्यादा गतिविधि के दौरान ब्लैकआउट का खतरा बढ़ जाएगा। खासकर जिन इलाकों में एआई डेटा सेंटर ज्यादा होंगे, वहां यह समस्या गंभीर हो सकती है। बता दें कि स्थानीय ग्रिड डेटा सेंटरों की बिजली से जुड़ी जरूरतों को संभालने के लिए तैयार नहीं है। इसका नतीजा यह होगा कि आम लोगों को बिजली कटौती का सामना करना पड़ेगा। यह चीज घरों और फै्ट्रिरयों दोनों को प्रभावित करेगी। इसका समाधान क्या है?
श्रीधर वेम्बु ने अपने ट्वीट में बताया है कि हमें एआई तकनीक को ऐसे विकसित करना होगा जो कम बिजली का इस्तेमाल करते हुए ज्यादा काम कर सके। मौजूदा एआई मॉडल बहुत ज्यादा ऊर्जा खपत करते हैं और यह टिकाऊ नहीं है। भारत को सौर और पवन ऊर्जा में निवेश बढ़ाना होगा। साथ ही, डेटा सेंटरों को ऐसी जगहों पर लगाना होगा जहां बिजली की आपूर्ति पर्याप्त हो और स्थानीय लोगों पर बोझ न पड़े।