राजस्थान के सीकर जिले में स्थित श्री खाटू श्याम जी का मंदिर देश-विदेश में प्रसिद्ध है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां ‘हारे के सहारे’ बाबा श्याम के दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि खाटू श्याम जी का संबंध महाभारत काल से है और वे पांडव भीम के पौत्र थे। उनका असली नाम बर्बरीक था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बर्बरीक घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र थे। घटोत्कच, महाबली भीम और हिडिम्बा के पुत्र थे। इस तरह बर्बरीक पांडव भीम के पौत्र हुए।
कहा जाता है कि जन्म के समय उनके बाल बब्बर शेर की तरह घने थे, इसलिए उनका नाम बर्बरीक रखा गया। वे बचपन से ही एक वीर और तेजस्वी योद्धा थे और उन्होंने अपनी मां तथा श्रीकृष्ण से युद्ध कला सीखी थी। तीन चमत्कारी बाण और दिव्य धनुष बर्बरीक ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था। शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें तीन ऐसे चमत्कारी बाण दिए, जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे। इन तीन बाणों से वे तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते थे।
इसी कारण उन्हें ‘तीन बाणधारी’ भी कहा जाता है। इसके अलावा, भगवान अग्निदेव ने उन्हें एक दिव्य धनुष प्रदान किया था, जो उन्हें अजेय बनाता था। ‘हारे का सहारा’ बनने का वचन जब बर्बरीक को महाभारत के युद्ध का समाचार मिला, तो उन्होंने भी इसमें भाग लेने का निर्णय किया। उन्होंने अपनी मां को वचन दिया कि वे युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ देंगे। यही वचन बाद में ‘हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा’ के जयकारे का आधार बना।
जब श्रीकृष्ण ने ली परीक्षा जब बर्बरीक युद्ध के लिए निकल पड़े, तो भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धरकर उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि वे केवल तीन बाणों से युद्ध कैसे लड़ेंगे। बर्बरीक ने उत्तर दिया कि उनका एक ही बाण पूरी शत्रु सेना को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है। श्रीकृष्ण ने उनकी शक्ति परखने के लिए उन्हें पास के पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक ही बाण से भेदने को कहा।
बर्बरीक ने बाण चलाया, जिसने पेड़ के सभी पत्तों को छेद दिया और श्रीकृष्ण के पैर के चारों ओर घूमने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छिपा लिया था। बर्बरीक ने ब्राह्मण से पैर हटाने को कहा, ताकि बाण अपना लक्ष्य पूरा कर सके। क्यों मांगा गया शीश का दान? श्रीकृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रभावित हुए, लेकिन वे उनकी प्रतिज्ञा से चिंतित हो गए। बर्बरीक ने कहा था कि वे हारते हुए पक्ष से लड़ेंगे।
श्रीकृष्ण जानते थे कि कौरव अपनी रणनीति के तहत पहले दिन कमजोर पड़ेंगे, जिससे बर्बरीक उनकी ओर से लड़ने लगेंगे और अपने बाणों से पांडव सेना का नाश कर देंगे। धर्म की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक से दान मांगा। बर्बरीक ने वचन दिया, तब श्रीकृष्ण ने उनसे उनके शीश का दान मांग लिया। बर्बरीक समझ गए कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है और उन्होंने अपने वास्तविक रूप में आने की प्रार्थना की।
श्रीकृष्ण के प्रकट होने पर, बर्बरीक ने खुशी-खुशी अपने शीश का दान कर दिया, लेकिन उन्होंने महाभारत का पूरा युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की। श्रीकृष्ण का वरदान और ‘श्याम’ नाम भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की इच्छा का सम्मान करते हुए उनके कटे हुए शीश को अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक ऊंची पहाड़ी पर स्थापित कर दिया, जहां से बर्बरीक पूरे युद्ध के साक्षी बने। युद्ध में पांडवों की विजय के बाद जब श्रेय को लेकर बहस हुई, तो बर्बरीक ने कहा कि इस जीत का एकमात्र श्रेय श्रीकृष्ण की नीति को जाता है।
बर्बरीक की इस महानता और बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया, ‘हे बर्बरीक, तुम महान हो। आज से तुम मेरे नाम ‘श्याम’ से जाने जाओगे और कलियुग में मेरे अवतार के रूप में पूजे जाओगे। जो भी तुम्हारे दर पर आएगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।’ माना जाता है कि उनका वही शीश राजस्थान के खाटू नगर में दफनाया गया था, जहां आज उनका भव्य मंदिर है।


