सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: अरावली में खनन पर रोक और अध्ययन के आदेश

Tina Chouhan

जोधपुर। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला में खनन को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए संपूर्ण अरावली क्षेत्र का वैज्ञानिक अध्ययन कराने, खनन पर सख्त नियंत्रण लागू करने और नई खनन लीज जारी करने पर अस्थाई रोक लगाने का बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि अरावली भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है, जो उत्तर भारत को मरुस्थलीकरण से बचाने वाली ग्रीन वॉल की तरह कार्य करती है। ऐसे में इसकी निरंतर क्षति पर्यावरण, जल-सुरक्षा और लाखों लोगों के जीवन पर गंभीर प्रभाव डालती है।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने कहा कि खनन गतिविधियों को वैज्ञानिक पद्धति और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए ही संचालित किया जा सकता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को आदेश दिया कि अरावली पर्वतमाला की संपूर्ण भू-पर्यावरणीय स्थिति का आईसीएफआरई द्वारा मैनेजमेंट प्लान फॉर सस्टेनेबल माइनिंग तैयार कराया जाए।

अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी: सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी दी जिसमें केंद्र द्वारा गठित समिति की उस परिभाषा को स्वीकार कर लिया जिसमें 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले सभी भू-भाग, ढाल, घाटियां और उनसे जुड़ी आकृतियां अरावली पर्वतमाला का हिस्सा मानी गई हैं। इस परिभाषा से व्यापक क्षेत्र अरावली में शामिल होगा। एमपीएसएम तैयार होने तक नई खनन लीज या पुराने पट्टों के नवीनीकरण की अनुमति नहीं दी जाएगी। पहले से लाइसेंस प्राप्त गतिविधियां जारी रहेंगी: हालांकि वर्तमान में चल रही लाइसेंस प्राप्त कानूनी खनन गतिविधियां सख्त निगरानी में जारी रहेंगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवेदनशील क्षेत्रों में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। जिसमें संरक्षित वन क्षेत्र, टाइगर रिजर्व, ईको-सेंसिटिव जोन, रैमसर साइट्स व महत्त्वपूर्ण वेटलैंड, जलस्रोत, रिचार्ज जोन, सीएएमपीए व अन्य सरकारी योजनाओं से विकसित वन और 500 मीटर-1 किलोमीटर तक के आसपास का निर्धारित सुरक्षा क्षेत्र। राज्यों को निर्देश: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को आदेश दिया कि अवैध खनन रोकने के लिए एकीकृत ऑनलाइन निगरानी प्रणाली, जिला स्तरीय टास्क फोर्स, नियमित पर्यावरणीय मूल्यांकन जैसी व्यवस्थाएं अनिवार्य हों।

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