आरोप तय करने में देरी पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमों में आरोप गठन में देरी पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि आरोप तय करने में अनावश्यक विलंब न्याय प्रक्रिया को कमजोर करता है और आरोपी के साथ-साथ पीड़ित के अधिकारों का भी हनन करता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने इस मुद्दे पर दिशानिर्देश तैयार करने का प्रस्ताव रखा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आपराधिक मामलों में आरोप गठन की प्रक्रिया को तेज करने के लिए समयबद्ध ढांचा जरूरी है।

कई मामलों में वर्षों तक आरोप तय नहीं होने से न केवल न्याय में देरी होती है, बल्कि सबूतों के नष्ट होने और गवाहों की स्मृति कमजोर होने का खतरा भी बढ़ता है। कोर्ट ने इसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना। अदालत ने क्या कहा पीठ ने केंद्र सरकार और अन्य पक्षों से इस संबंध में सुझाव मांगे हैं। कोर्ट का मानना है कि मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायाधीशों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश होने से देरी को रोका जा सकेगा।

साथ ही, कोर्ट ने कहा कि आरोप गठन के चरण में ही मामले की वैधता की जांच होनी चाहिए, ताकि निराधार मुकदमे जल्दी खत्म हो सकें। यह पहल आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। कोर्ट ने कहा कि दिशानिर्देश तैयार होने के बाद इन्हें पूरे देश में लागू किया जाएगा, जिससे मुकदमों के तेज निपटारे में मदद मिलेगी।

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Vikram Singh Bhati is author of Niharika Times web portal
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