कोटा। सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी-सीएसी ने कोनोकार्पस इरेक्ट्स पेड़-पौधे को मानव स्वास्थ्य, जैव विविधता और पर्यावरण के लिए खतरनाक माना है। कमेटी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में सौंपी 40 पेजों की रिपोर्ट में इसके गंभीर दुष्प्रभावों का उल्लेख किया है। देशभर में कोनोकार्पस के आयात और नर्सरी में उत्पादन पर बैन लगाने की सिफारिश की गई है। जहां यह पेड़ लगे हुए हैं, उन्हें हटाकर स्थानीय प्रजातियों के पौधों लगाने का सुझाव दिया गया है। दैनिक नवज्योति ने सोमवार के अंक में इस पौधे के दुष्प्रभावों पर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया था।
बच्चों और बुजुर्गों में श्वसन और हड्डियों से संबंधित बीमारियां पाई गई हैं। सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ने बताया कि कोनोकार्पस के परागकणों से बच्चों और बुजुर्गों में कई तरह की श्वसन संबंधी बीमारियां हो जाती हैं, जैसे अस्थमा, एलर्जी, दमा और सांस लेने में दिक्कत। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि कोनोकार्पस के पत्तों में रसायन होते हैं, जो मिट्टी की संरचना को बदल देते हैं। इसकी जड़ें भी खतरनाक होती हैं, जो जमीन के नीचे गहराई तक जाती हैं और स्थानीय पेड़-पौधों की वृद्धि को प्रभावित करती हैं।
कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया है कि कोनोकार्पस वृक्ष को देश के सभी राज्यों में इनवेसिव घोषित किया जाए। सभी राज्यों में कोनोकार्पस के आयात और नर्सरियों में पौध तैयार करने पर बैन लगाए जाए। गुजरात सरकार ने 2023 में कोनोकार्पस को नर्सरी में तैयार करने पर प्रतिबंध लगा दिया। तमिलनाडू सरकार ने जनवरी 2025 में वन भूमि और गैर वन भूमि पर लगे कोनोकार्पस को हटाने के आदेश जारी किए हैं। आंध्र प्रदेश सरकार ने काकीनाड़ा में 35000 से ज्यादा कोनोकार्पस पेड़ों को कटवाया है।
तेलंगाना ने 2022 में निर्देश दिए हैं कि इस पौधे को न लगाया जाए और पहले से लगे वृक्षों को हटाया जाए। असम की गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम सरकार को कोनोकार्पस नहीं लगाने के निर्देश दिए हैं। कर्नाटक में 2024 में वन विभाग ने यह पौधे नहीं लगाने के आदेश दिए हैं। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 की धारा 62-ए केंद्र को इनवेसिव प्रजातियों के लिए नियम बनाने की शक्ति देती है। वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर इनवेसिव प्रजातियों के लिए कोई मॉनिटरिंग या रेगुलेटरी गाइडलाइन नहीं है। राजस्थान में कोनोकार्पस की भरपूर मात्रा में रोपण किया जा रहा है।
कमेटी की प्रमुख सिफारिशें हैं कि कोनोकार्पस के रोपण को तुरंत रोका जाए और इसे आक्रामक प्रजाति के रूप में अधिसूचित किया जाए। इसके प्रसार, आयात और पौधों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाए। पहले से लगाए गए पौधों को हटाकर उनकी जगह देशज प्रजातियों का रोपण किया जाए। आक्रामक विदेशी प्रजातियों से निपटने के लिए और अधिक मजबूत नियामक और कानूनी ढांचे तैयार किए जाएं।