नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि किसी दलित व्यक्ति को ‘हरामी’ कहना जाति सूचक गाली नहीं है और इस आधार पर SC/ST एक्ट के तहत मामला नहीं बनता। शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ आरोपी को अंतरिम जमानत दे दी और पुलिस के रवैये पर हैरानी जताई। यह फैसला जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने सिद्धार्थन बनाम केरल राज्य मामले की सुनवाई करते हुए दिया।
मामला केरल का है, जहां 16 अप्रैल को एक शिकायत दर्ज कराई गई थी। FIR के अनुसार, आरोपियों ने शिकायतकर्ता को सड़क पर रोका, उसे धमकाया और कथित तौर पर चाकू से हमला किया। आरोप है कि हमला करने से पहले आरोपी ने शिकायतकर्ता को ‘हरामी’ कहा। इस हमले में शिकायतकर्ता के हाथ में बचाव के दौरान चोटें आईं। पुलिस ने SC/ST एक्ट की धाराएं जोड़ दीं। पुलिस ने तर्क दिया कि ‘हरामी’ शब्द का इस्तेमाल जाति के आधार पर अपमान करने के लिए किया गया था।
SC/ST एक्ट लगने के बाद 55 वर्षीय आरोपी ने अग्रिम जमानत के लिए केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आरोपी ने दलील दी कि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और SC/ST एक्ट की धाराएं गलत तरीके से जोड़ी गई हैं। हालांकि, हाईकोर्ट ने जमानत याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई और कहा कि यह जानकर आश्चर्य हुआ कि पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ सिर्फ ‘हरामी’ शब्द के इस्तेमाल पर SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया।
कोर्ट ने पाया कि सिर्फ SC/ST एक्ट की धाराएं जुड़ने की वजह से ही हाईकोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने पुलिस के इस रवैये की आलोचना की और आरोपी को अंतरिम जमानत दे दी।


