नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अपने 11 अगस्त के आदेश में संशोधन करते हुए शुक्रवार को जांच का दायरा बढ़ा दिया। अदालत ने कहा कि देश भर में आवारा कुत्तों की समस्या पर एक अखिल भारतीय राष्ट्रीय नीति तैयार करने के लिए उसने अपनी कार्यवाही का दायरा बढ़ाने का निर्णय लिया। अदालत ने कहा कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से पकड़े गए आवारा कुत्तों को टीकाकरण के बाद ही छोड़ा जा सकता है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने यह आदेश पारित किया। पीठ ने कहा कि रेबीज से प्रभावित और आक्रामक व्यवहार वाले कुत्तों को छोड़कर सभी अन्य कुत्तों को वापस स्थानांतरित किया जा सकता है।
अदालत ने 11 अगस्त, 2025 को दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के इलाकों से आवारा कुत्तों को पकड़े जाने के बाद उन्हें छोड़ने के खिलाफ एक स्वत: संज्ञान मामले में दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा जारी निर्देश को स्थगित करने का आदेश दिया। पीठ ने नगर निगम अधिकारियों को प्रत्येक वार्ड में आवारा कुत्तों के लिए भोजन क्षेत्र बनाने या उनकी पहचान करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि अन्य क्षेत्रों में भोजन की अनुमति नहीं दी जाएगी, क्योंकि अनियमित भोजन से आम आदमी को समस्याएँ होती हैं। अदालत ने उल्लंघनों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए हेल्पलाइन बनाने का भी निर्देश दिया।
पीठ ने घोषणा की कि कोई भी व्यक्ति या संगठन अधिकारियों के कर्तव्यों के निर्वहन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करेगा। सुविधाओं के निर्माण के लिए प्रत्येक गैर-सरकारी संगठन को 25,000 रुपए का भुगतान किया जाएगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि एबीसी नियमों के अनुसार, किसी भी व्यक्ति या संगठन को नगर निगम अधिकारियों को कुत्तों को उठाने से नहीं रोकना चाहिए। अदालत ने कहा, “हम कार्यवाही का दायरा बढ़ाकर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, उनके पशुपालन विभाग और नगर निगम अधिकारियों को इसमें शामिल करने का प्रस्ताव रखते हैं।” अदालत ने अपनी रजिस्ट्री को उच्च न्यायालयों में लंबित इसी तरह के मामले का विवरण प्राप्त करने का निर्देश दिया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय को स्थानांतरित किया जाएगा।
पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कार्यवाही में पक्षकार बनाने के बाद मामले को आठ सप्ताह बाद विचार के लिए सूचीबद्ध किया। अदालत ने 14 अगस्त को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया और पिछले आदेश की वैधता पर सवाल उठाने वाले सभी हस्तक्षेपकर्ताओं को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें कहा गया कि एक तरफ मानवीय पीड़ा है और दूसरी तरफ पशु प्रेमी हैं। अदालत ने तब कहा कि यह सारी समस्या नगर निगम की निष्क्रियता के कारण हुई है। दो न्यायाधीशों वाली पीठ के पिछले आदेश पर तीखी प्रतिक्रिया और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के बाद देश के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने तीन न्यायाधीशों की एक नई पीठ का गठन किया था।
गैर-सरकारी संगठनों और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, ए एम सिंघवी, सिद्धार्थ लूथरा, सिद्धार्थ दवे, अमन लेखी, कॉलिन गोंजाल्विस और अन्य ने 11 अगस्त के आदेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि आवारा कुत्तों के लिए पर्याप्त आश्रय गृह नहीं हैं। न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 11 अगस्त को स्थिति को बेहद गंभीर मानते हुए दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नगर निकायों को सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को जल्द से जल्द हटाने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि ऐसे आवारा कुत्तों को हटाने में बाधा डालने वाले किसी भी व्यक्ति या संगठन पर अवमानना कार्यवाही सहित कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
शीर्ष अदालत ने जुलाई में छह साल की एक बच्ची की असामयिक मृत्यु से संबंधित एक मीडिया रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कुत्तों के काटने की घटनाओं और रेबीज से होने वाली मौतों के खतरे से निपटने के लिए कदम उठाया था।


