कल्पना कीजिए आप किसी ऐसे शहर में घूम रहे हैं, जिसकी गलियों और बाजारों में आपकी आंखें बस एक नजर में खो जाती हैं। स्थानीय खाने का स्वाद चखते हुए अचानक आपकी नजर एक टैटू स्टूडियो पर पड़ती है और तभी मन में एक ख्याल आता है “क्यों न वही टैटू, जिसके बारे में मैं सालों से सोच रहा था, यहीं बनवा लूं? अब लोग अपनी यात्राओं का एक स्थायी निशान अपने शरीर पर छोड़ रहे हैं। भारत सहित अन्य देशों में टैटू टूरिज्म का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है।
आजकल यह लोगों के बीच फैशन का भी हिस्सा बन चुका है। लोग बाली, लंदन, गोवा या जापान की यात्रा सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि वहां के कलाकार, उनकी शैली और संस्कृति का करीब से अनुभव कर सकें। यहां पर्यटकों को एक अलग ही मेमोरी मिल रही है। पहले करते हैं शोध आजकल लोग ट्रैवलिंग के दौरान जो यादें लेकर आते हैं, वे केवल फोटो या वीडियो तक ही सीमित नहीं रह गई, बल्कि अब इस लिस्ट में टैटू का नाम शामिल हो चुका है। लोग किसी भी चीज पर अपनी त्वचा पर उतारते हैं।
थाईलैंड में सक यंत मंदिर की पवित्र ज्यामिति, जापान में प्राचीन तेबोरी तकनीक या पॉलीनेशिया में पारंपरिक पैतृक डिज़ाइन हर जगह की अपनी पहचान बताता है। इस दौरान पर्यटक पहले उस कलाकार, उसकी तकनीक और सांस्कृतिक महत्व का शोध करते हैं। फिर तय करते हैं कि कौन सा शहर, कौन सा कलाकार और कौन सी शैली उनके वर्तमान जीवन को सबसे बेहतर ढंग से दर्शा सकती है। भारत में भी बढ़ा ट्रेंड बता दें कि भारत में भी यह ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। गोवा में समुद्र की लहरों के बीच टैटू बनवाना एक अलग ही एहसास देता है।
यहां हर डिज़ाइन में स्वतंत्रता की भावना झलकती है। दिसंबर में आयोजित गोवा टैटू फेस्टिवल में भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय कलाकार अपनी शैलियों और तकनीकों का संगम देखने को मिलता है। यहां हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। इसके अलावा, मुंबई में भी लोग अपनी पहचान, लचीलापन और जीवन की कहानियों को टैटू के जरिए व्यक्त करना चाहते हैं। बेंगलुरु की युवा और तकनीकी भीड़ ने मिनिमलिस्ट और ज्यामितीय डिज़ाइन को अपनाया है। वहीं, उत्तर-पूर्व भारत में टैटू सदियों से वंशावली और संस्कृति का प्रतीक रहा है। नागालैंड, अरुणाचल और मिजोरम के आदिवासी समुदायों में टैटू एक जीवित भाषा है।

