राजस्थान में टेट परीक्षा अनिवार्य, हजारों शिक्षक प्रभावित होंगे

Tina Chouhan

जयपुर। सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय ने स्पष्ट किया है कि कक्षा एक से आठ तक पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (टेट) न केवल नई नियुक्तियों के लिए, बल्कि पदोन्नति के लिए भी अनिवार्य होगा। इस आदेश का सीधा असर राजस्थान के हजारों शिक्षकों पर पड़ेगा। शिक्षक संगठनों ने प्रदेश की शिक्षण संस्थाओं से अनुरोध किया है कि शिक्षकों के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इसे लागू किया जाए। राजस्थान में टेट की शुरुआत वर्ष 2011 में हुई थी। पहले की भर्ती प्रक्रियाओं से जुड़े शिक्षकों को अब पदोन्नति के लिए यह परीक्षा देनी होगी।

आंकड़ों के अनुसार, 1998 तक नियुक्त तृतीय श्रेणी शिक्षकों की संख्या लगभग एक लाख है। यह वर्ग इस आदेश से सबसे अधिक प्रभावित होगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1999 से 2004 के बीच कोई भर्ती नहीं हुई थी, जबकि 2005, 2008 और 2010 की बड़ी भर्तियों के शिक्षक भी टेट लागू होने से पहले नियुक्त हुए थे। निर्णय के अनुसार, यदि कोई शिक्षक 55 वर्ष से अधिक आयु का है और पदोन्नति नहीं चाहता, तो उसे टेट देना अनिवार्य नहीं होगा। वहीं, कक्षा 9 से 12 तक पढ़ाने वाले वरिष्ठ अध्यापक और व्याख्याता पर यह नियम लागू नहीं होगा।

यानी टेट की बाध्यता केवल कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के लिए रहेगी। अल्पसंख्यक संस्थानों पर भी सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश लागू होगा। अब तक ये संस्थान अपनी स्वायत्तता का हवाला देकर कई नियमों से अलग रहते थे, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए अदालत ने स्पष्ट कहा है कि टेट सभी शिक्षकों के लिए समान रूप से आवश्यक होगा। शिक्षकों ने सरकार को सुझाव दिया है कि भविष्य में राज्य सरकारों, शिक्षा बोर्डों और संस्थानों को मिलकर काम करना होगा ताकि इस निर्णय का सही क्रियान्वयन हो सके।

सुप्रीम कोर्ट ने एक सितंबर को यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। टेट परीक्षा का उद्देश्य शिक्षण व्यवस्था में न्यूनतम मानक स्थापित करना और शिक्षण गुणवत्ता में सुधार लाना था। परीक्षा की द्विस्तरीय संरचना कक्षा एक से पांच और कक्षा छह से आठ के लिए डिजाइन की गई थी, ताकि शिक्षकों की विषयवस्तु ज्ञान और शिक्षण कौशल का मूल्यांकन किया जा सके। इस निर्णय के कार्यान्वयन में कई चुनौतियां आ सकती हैं। सबसे पहले, वरिष्ठ शिक्षकों के एक वर्ग का इस नीति का विरोध जारी रह सकता है, जो इसे अपने अनुभव की अवमानना मानते हैं।

दूसरे, टेट परीक्षा आयोजित करने में खासकर ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर और फ्रीक्वेंसी भी एक चुनौती हो सकती है। तीसरे, अल्पसंख्यक संस्थान इस निर्णय को अपने संवैधानिक अधिकारों पर अतिक्रमण मान सकते हैं और कानूनी कार्रवाई का सहारा ले सकते हैं।

Share This Article