विपरीत राजयोग 2025: ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों, राशियों और कुंडली नक्षत्र और ग्रहण का बड़ा महत्व माना जाता है। खास करके न्याय व दंड के देवता शनि की भूमिका ज्योतिष में बेहद अहम मानी जाती है। शनि एक से दूसरी राशि में जाने के लिए करीब ढाई वर्ष का समय लेते हैं, ऐसे में एक ही राशि में दोबारा आने में शनि को करीब 30 साल लगते हैं। वर्तमान में शनि मीन राशि में विराजमान है और 28 नवंबर 2025 को मीन में ही वक्री होंगे, जिससे महा विपरीत राजयोग का निर्माण होगा।
ज्योतिष में यह राजयोग अत्यंत प्रभावशाली और दुर्लभ माना गया है। विपरित राजयोग बनने से 3 राशियों को विशेष फल की प्राप्ति हो सकती है। धनु राशि पर प्रभाव: विपरीत राजयोग जातकों के लिए फलदायी साबित हो सकता है। व्यापार में बढ़ोतरी होगी और परिवार में सुख-शांति बढ़ेगी। घर, वाहन या नया मकान खरीदने का सपना भी पूरा हो सकता है। नौकरीपेशा को वेतन वृद्धि और प्रमोशन का तोहफा मिल सकता है। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। मनचाही इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। आत्मविश्वास में वृद्धि हो सकती है। विदेश जाने के प्रबल योग हैं।
लंबे समय से काम में चली आ रही बाधाएं दूर हो सकती हैं। बिजनेस या फिर वाहन के लिए लोन पाने का रास्ता खुल सकता है। सिंह राशि पर प्रभाव: विपरीत राजयोग जातकों के लिए अनुकूल सिद्ध हो सकता है। बेरोजगार को नौकरी के प्रस्ताव मिल सकते हैं। नौकरीपेशा जातकों के लिए यह समय शुभ रहेगा। प्रमोशन और वेतन वृद्धि के योग हैं। वैवाहिक जीवन की परेशानियां भी खत्म होंगी। संतान प्राप्ति के योग भी बन रहे हैं। समाज में मान-सम्मान की भी वृद्धि हो सकती है। मानसिक तनाव से भी मुक्ति मिल सकती है।
मीन राशि पर प्रभाव: यह विपरीत राजयोग जातकों के लिए सकारात्मक परिणाम लेकर आ सकता है। आर्थिक स्थिति मजबूत और पराक्रम में वृद्धि हो सकती है। नौकरीपेशा को प्रमोशन या नई जिम्मेदारियाँ मिल सकती हैं। करियर से जुड़े मामलों में सफलता हासिल हो सकती है। लंबे समय से अटके व रुके काम पूरे हो सकते हैं। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को सफलता मिल सकती है। स्वास्थ्य अच्छा रहने वाला है। धार्मिक कार्यक्रमों में रुचि बढ़ेगी। निवेश करना लाभकारी हो सकता है। संपत्ति और वाहन से जुड़े कार्य भी सफल हो सकते हैं।
कुंडली में कब बनता है विपरित राजयोग वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, विपरीत राजयोग ज्योतिष में एक विशेष प्रकार का योग है जो कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामियों के बीच बनता है। यह योग आमतौर पर अशुभ माने जाने वाले भावों (6वें, 8वें और 12वें) के स्वामियों के एक साथ आने से बनता है। विपरीत राजयोग का निर्माण होने से व्यक्ति को धन लाभ के साथ वाहन, संपत्ति का सुख प्राप्त होता है। इस योग में त्रिक भावों और उनके स्वामियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
वैसे त्रिक भावों को ज्योतिष शास्त्र में शुभ नहीं माना जाता लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण यह शुभ फल देने लगते हैं, वहीं मुख्यत: त्रिक भावों में से किसी भाव का स्वामी किसी अन्य त्रिक भाव में विराजमान हो तो इस योग का निर्माण होता है।

