कार्तिक माह का शुक्ल पक्ष अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दौरान देवउठनी एकादशी से लेकर तुलसी विवाह तक हर दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीनों की योगनिद्रा से जागते हैं, और जगत में पुनः सृजन और शुभ कार्यों का आरंभ होता है। इसके अगले दिन तुलसी विवाह का आयोजन होता है, जिसमें भगवान विष्णु के प्रतीक शालिग्राम और देवी तुलसी का शुभ विवाह होता है। यह पर्व भक्ति, प्रेम और पवित्रता का संगम है।
मान्यता है कि तुलसी और शालिग्राम का विवाह करने से जीवन में सौभाग्य, वैवाहिक सुख और आर्थिक समृद्धि आती है। इस दिन घर-घर में आरती गूंजती है, “शालिग्राम सुनो विनती मेरी…” जो भक्तों के मन को शांति और आत्मा को सुकून प्रदान करती है। शालिग्राम भगवान की आरती का महत्व आरती हिंदू धर्म में भक्ति की सर्वोच्च अभिव्यक्ति मानी जाती है। जब कोई भक्त आरती करता है, तो वह भगवान को प्रकाश और भक्ति अर्पित करता है।
तुलसी विवाह के अवसर पर शालिग्राम भगवान की आरती विशेष रूप से की जाती है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु स्वयं तुलसी देवी के साथ गृहस्थ रूप में पूजे जाते हैं। आरती करने का लाभ मन की नकारात्मकता दूर होती है। घर में सुख-शांति और लक्ष्मी का वास होता है। वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है। आर्थिक स्थिति में सुधार के योग बनते हैं। शालिग्राम भगवान की आरती के बोल इस प्रकार हैं: “शालिग्राम सुनो विनती मेरी। यह वरदान दयाकर पाऊं। प्रात: समय उठी मंजन करके। प्रेम सहित स्नान कराऊँ। चन्दन धुप दीप तुलसीदल। वरन -वरण के पुष्प चढ़ाऊँ।
तुम्हरे सामने नृत्य करूँ नित। प्रभु घंटा शंख मृदंग बजाऊं। चरण धोय चरणामृत लेकर। कुटुंब सहित बैकुण्ठ सिधारूं। जो कुछ रुखा सूखा घर में। भोग लगाकर भोजन पाऊं। मन वचन कर्म से पाप किये। जो परिक्रमा के साथ बहाऊँ। ऐसी कृपा करो मुझ पर। जम के द्वारे जाने न पाऊं। माधोदास की विनती यही है। हरी दासन को दास कहाऊं। तुलसी विवाह में शालिग्राम की पूजा का महत्व वैष्णव परंपरा का सबसे पवित्र पर्व माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के प्रतीक शालिग्राम शिला और देवी तुलसी का विवाह संपन्न होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी देवी विष्णु की अनन्य भक्त थीं, जिन्होंने अपने पूर्व जन्म में वृंदा के रूप में भगवान को पति रूप में पाने का वरदान मांगा था। भगवान विष्णु ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें तुलसी के रूप में जन्म दिया, और तुलसी विवाह के दिन उनसे विवाह करने का वचन दिया। यही कारण है कि इस दिन शालिग्राम शिला को भगवान विष्णु का साक्षात रूप मानकर तुलसी के साथ विवाह संपन्न किया जाता है। शालिग्राम पूजा की विधि में शुद्ध स्नान के बाद पूजा स्थल की तैयारी करें। शालिग्राम शिला को गंगाजल से स्नान कराएं।
तुलसी पत्र, चंदन, पुष्प और दीप अर्पित करें। शालिग्राम के सामने तुलसी विवाह का संकल्प लें। आरती “शालिग्राम सुनो विनती मेरी” गाएं। भोजन और प्रसाद तुलसी जी को अर्पित करें। तुलसी विवाह की शुभ तिथि 2025 में 1 नवंबर को मनाई जाएगी। यह पर्व कार्तिक मास की द्वादशी तिथि को आता है, जो देवउठनी एकादशी के अगले दिन होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन किए गए विवाह, दान और व्रत का पुण्य सौ गुना अधिक मिलता है।
तुलसी विवाह का संबंध न केवल पौराणिक आस्था से बल्कि सामाजिक संदेश से भी है, यह त्योहार स्त्री-पुरुष के समान अधिकार, समर्पण और प्रेम की प्रतीक है। तुलसी और शालिग्राम विवाह के धार्मिक फल जीवन में वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। दांपत्य में मधुरता और स्थिरता आती है। संतान प्राप्ति के योग बनते हैं। घर-परिवार में शांति, प्रेम और समृद्धि का वातावरण रहता है। जो भक्त हर वर्ष इस विवाह का आयोजन करते हैं, उनके जीवन से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

