10वीं शताब्दी की अद्भुत गणेश प्रतिमाओं की जानकारी

Tina Chouhan

जयपुर। सीकर के हर्ष पहाड़ी पर हर्षनाथ मंदिर के पास स्थित भैरव मंदिर के भीतर स्थापित 76 गुणा 48 सेमी की यह अद्भुत शिल्पकृति गणेश प्रतिमा कला प्रेमियों और शोधकर्ताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है। यह वास्तुशिल्पीय अवयव एक स्तंभित कोष्ठक (पिलास्टर्ड निच) को प्रदर्शित करता है जिसके शीर्ष पर अलंकृत पेडीमेंट है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, जयपुर सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद् विनय गुप्ता इस कोष्ठक के भीतर चार भुजाओं से सुसज्जित नृत्यमग्न गणेशजी की छवि उकेरी गई है। गणेश जी बाईं ओर मुख किए हुए हैं।

उनके ऊपरी बाएं हाथ में मोदक पात्र है, जबकि ऊपरी दाहिना हाथ नृत्य में संलग्न है, लेकिन क्षतिग्रस्त होने के कारण उसमें धारित वस्तु स्पष्ट नहीं हो पाती। दाहिना हाथ अंकुश धारण किए है और बायां हाथ नृत्य मुद्रा में दर्शाया गया है। उन्होंने बताया कि ये 10वीं शताब्दी की मूर्तियां हैं। अद्भुत शिल्प में झलकती कला और आस्था विनय गुप्ता ने बताया कि एक अद्वितीय शिल्पकृति में छह भुजाओं वाले गणेश जी को नृत्यमुद्रा में दर्शाया गया है। यह मूर्ति एएसआई के स्टोर में संरक्षित है। ये मूर्ति 54 गुणा 45 सेमी आकार की है।

मूर्ति में गणेश जी को कटीसूत्र, कई हार, कंगन, नूपुर और मुकुट धारण किए हुए दिखाया गया है, जो ताज जैसी आकृति में निर्मित है। उनका सूंड दाईं ओर मुड़ा हुआ है। ये मूर्ति भी 10वीं शताब्दी की बताई जाती है। गणेश जी के बाएं हाथ में मोदक पात्र स्पष्ट रूप से अंकित है, जबकि अन्य तीन हाथों का क्षतिग्रस्त होना उनके शस्त्रों और मुद्राओं की पहचान को कठिन बना देता है। एक सर्प उनके उदर पर नाग यज्ञोपवीत के रूप में उकेरा गया है, जो इस मूर्ति को विशेष पौराणिक अर्थ देता है।

मूर्ति के निचले बाएं कोने में गणेश जी के वाहन मूषकराज को एक पुरुष आकृति के साथ अंत:क्रिया करते हुए दिखाया गया है। दाहिने निचले कोने में दो पुरुष कलाकार पखावज और बांसुरी बजाते हुए अंकित हैं, जो इस दृश्य को जीवंत बनाते हैं।

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