गयाजी। पितृपक्ष की शुरूआत हो चुकी है, जिसमें हिंदू धर्म से जुड़े लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करते हैं। यह विशेष समय हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक चलता है, और इस दौरान पूर्वजों के श्राद्ध और पिंडदान का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस समय किया गया श्राद्ध पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करता है। आमतौर पर ये कर्म मृतकों के लिए होता है, लेकिन क्या आपने सुना है कि कोई व्यक्ति जीवित रहकर अपना श्राद्ध करे?
बिहार में एक ऐसा अद्भुत मंदिर है, जहां आत्मश्राद्ध यानी जीते जी खुद का पिंडदान किया जाता है। यह जनार्दन मंदिर गया जी में स्थित है, जो पूरी दुनिया में इकलौता ऐसा मंदिर है जहां जीवित व्यक्ति अपना ही श्राद्ध करते हैं। यह मंदिर भस्मकूट पर्वत पर मां मंगला गौरी मंदिर के उत्तर में मौजूद है। मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु स्वयं जनार्दन स्वामी के रूप में पिंड ग्रहण करते हैं। आमतौर पर यहां वे लोग आत्मश्राद्ध करने के लिए आते हैं जिनकी संतान नहीं है या परिवार में उनके बाद पिंडदान करने वाला कोई नहीं है।
इस मंदिर की महत्ता सचमुच विशेष है। गया के भस्म कूट पर्वत पर स्थित यह मंदिर श्रद्धा और विश्वास का बड़ा केंद्र माना जाता है। पितृ पक्ष मेले में यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं और आत्म पिंडदान कर अपने पूर्वजों को तर्पण अर्पित करते हैं। यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है और पूरी तरह चट्टानों पर बना हुआ है, जो इसे और भी अनोखा बनाता है। यहां भगवान विष्णु की जनार्दन रूप में दिव्य प्रतिमा स्थापित है, जिसके बारे में मान्यता है कि वह भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती है।
आत्मश्राद्ध की प्रक्रिया तीन दिन में पूरी होती है। पहले गया जी तीर्थस्थल आने पर वैष्णव सिद्धि का संकल्प लेते हैं और पापों का प्रायश्चित करते हैं। इसके बाद भगवान जनार्दन स्वामी के मंदिर में पूजा-अर्चा और जाप किया जाता है। फिर दही और चावल से बने 3 पिंड भगवान को अर्पित होते हैं। खास बात यह है कि इसमें तिल का इस्तेमाल नहीं होता, जबकि मृतकों को श्राद्ध में तिल जरूरी माना जाता है। पिंड अर्पित करते समय श्रद्धालु भगवान से प्रार्थना करते हैं कि भगवान जीवित रहते हुए मेरा खुद के लिए यह पिंड अर्पित कर रहा हूं।
जब मेरी आत्मा इस शरीर से त्याग करेगी, आपके आशीर्वाद से मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो।