उत्पन्ना एकादशी से व्रत की शुरुआत कैसे करें, जानें तिथि और विधि

vikram singh Bhati

एकादशी एक महत्वपूर्ण तिथि है, जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे श्रेष्ठ फल देने वाला माना जाता है। यदि आप एकादशी व्रत शुरू करने का विचार कर रहे हैं, तो उत्पन्ना एकादशी सबसे उपयुक्त है। यह वही दिन है जब एकादशी देवी उत्पन्न हुई थीं। यह तिथि मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष में आती है। जो व्यक्ति एकादशी व्रत करता है, उसके जीवन में सुख, समृद्धि, धन और मानसिक शांति बनी रहती है।

उत्पन्ना एकादशी की तिथि 15 नवंबर की रात 12:49 पर शुरू होगी और इसका समापन 16 नवंबर को सुबह 2:37 पर होगा। व्रत का पारण 1:10 से 3:18 के बीच किया जा सकता है, लेकिन ध्यान रखें कि पारण सूर्योदय के बाद होना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा के लिए एक दिव्य शक्ति उत्पन्न की थी, जिसे देवी एकादशी कहा जाता है। इसलिए, एकादशी तिथि पर देवी का जन्मदिन मनाया जाता है। व्रत की शुरुआत के लिए यह तिथि सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है।

पहली बार एकादशी व्रत करने वाले को उत्पन्ना तिथि से इसकी शुरुआत करनी चाहिए। पूजन में पुष्प, गंगाजल, चंदन, अक्षत, तुलसी दल, घी का दीपक, पंचामृत, मिष्ठान, फल, धूप, नारियल, सुपारी, शकरकंद, अमरुद, मूली, सीताफल, सिंघाड़ा, ऋतु फल और आंवला जैसी सामग्री लगती है। व्रत करने के लिए सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर अपने घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं और उसे गंगाजल से शुद्ध करें। भगवान विष्णु को चंदन, अक्षत, तुलसी दल और पीले फूल अर्पित करें। इस दिन निर्जला या फलाहार व्रत रखा जा सकता है।

व्रत के दौरान ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें और दिनभर भगवान विष्णु का ध्यान रखें। शाम को आरती कर भोग लगाएं। माता लक्ष्मी की पूजा करना भी शुभ माना जाता है। व्रत खोलते समय शुभ समय का ध्यान रखें और तुलसी दल पास रखें। व्रत के दौरान प्याज, लहसुन, चावल और तामसिक भोजन से बचें। इस दिन किसी का मन न दुखाएं और झूठ, क्रोध से दूर रहें। पूरे समय भगवान विष्णु का ध्यान रखें और शाम को दीपदान करें। व्रत के साथ दान का विशेष महत्व है, इसलिए जरूरतमंदों को कंबल या अन्न का दान करें।

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Vikram Singh Bhati is author of Niharika Times web portal