हाड़ौती के कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी, छात्रों को हो रही दिक्कतें

Tina Chouhan

कोटा। हाड़ौती के दो प्रमुख सरकारी कॉमर्स कॉलेजों में छात्रों के साथ-साथ फैकल्टी की भी आधी से अधिक सीटें खाली हैं। वाणिज्य महाविद्यालयों में शिक्षकों के स्वीकृत पदों की तुलना में आधे से अधिक पद लंबे समय से रिक्त हैं, जिससे विद्यार्थियों को पढ़ाई में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। समय पर कक्षाएं न लगने और अन्य समस्याओं के कारण छात्रों का नियमित कॉलेज आने में रुचि कम हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दौर है, लेकिन कॉमर्स के पाठ्यक्रम में एआई की उपयोगिता को शामिल नहीं किया गया है।

इसके अलावा, महाविद्यालयों में थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल ज्ञान की कमी भी घटते रुझान का एक बड़ा कारण है। कॉमर्स पढ़ने वाले छात्रों की कमी का असर आने वाले वर्षों में फैकल्टी की उपलब्धता के रूप में दिखाई देगा। इसीलिए कॉलेजों में स्वीकृत पदों की तुलना में रिक्त पदों की संख्या अधिक है। लड़कों के कॉलेज में 750 और लड़कियों के कॉलेज में 550 छात्रों ने एडमिशन नहीं लिया है। वाणिज्य उच्च शिक्षा में घटते रुझान का सबसे बड़ा उदाहरण है।

गवर्नमेंट कॉमर्स कॉलेज में बीकॉम फर्स्ट ईयर में 1400 सीटें हैं, जिन पर केवल 650 छात्रों ने एडमिशन लिया है। शेष 750 छात्रों ने दाखिला लेने में रुचि नहीं दिखाई। इसी तरह, लड़कियों के कॉलेज में 800 सीटों के मुकाबले केवल 250 छात्राओं ने ही एडमिशन लिया है। शिक्षा की गुणवत्ता में कमी के कारण विषयवार प्रोफेसरों के पद रिक्त होने का नकारात्मक प्रभाव कॉलेज शिक्षा पर पड़ रहा है। उच्च शिक्षा से गुणवत्ता दूर होती जा रही है। स्थिति यह है कि यहां बच्चे साल भर में बहुत कम समय कॉलेज आते हैं।

जिसमें पहली बार कॉलेज में नामांकन, दूसरी बार परीक्षा फॉर्म भरना, तीसरी बार परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड लेना और चौथी बार परीक्षा देना शामिल है। विषयवार शिक्षकों के पद रिक्त होने से पढ़ाई प्रभावित रहती है। विद्यार्थी अखिलेश नागर और दीपांशु मेहरा ने बताया कि सेमेस्टर प्रणाली के तहत हर 6 माह में परीक्षा होती है, लेकिन शैक्षणिक सत्र लेट चलने के कारण परीक्षा ढाई से तीन माह में हो रही है। इस स्थिति में शिक्षकों की कमी से पाठ्यक्रम भी पूरा नहीं हो पाता। दोनों कॉलेजों में 67 में से 37 शिक्षकों के पद रिक्त हैं।

आयुक्तालय के क्षेत्रीय सहायक निदेशक कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, गवर्नमेंट बायॉज और गर्ल्स कॉलेजों में शिक्षकों के कुल 67 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से केवल 30 कार्यरत हैं। ऐसे में 37 पद लंबे समय से रिक्त हैं। इनमें अकाउंटिंग, अर्थशास्त्र और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन जैसे महत्वपूर्ण विषयों के शिक्षक नहीं होने से विद्यार्थियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गर्ल्स कॉलेज में अकाउंटिंग में 8 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से केवल 2 कार्यरत हैं। बीएडएम में 8 के मुकाबले 4 और इकोनोमिक्स में 7 के मुकाबले 4 पद लंबे समय से खाली हैं।

कॉमर्स के प्रति घटते रुझान के प्रमुख कारणों में कोटा विश्वविद्यालय में वाणिज्य एवं प्रबंध विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. मीनू माहेश्वरी बताती हैं कि कोटा सहित प्रदेश में लगातार कॉमर्स के प्रति रुझान घट रहा है, जिसका विपरीत असर फैकल्टी की उपलब्धता में कमी के रूप में भी देखा जा रहा है। हालांकि, रुझान घटने के कई प्रमुख कारण हैं। वर्तमान में विद्यार्थी 11वीं-12वीं में कॉमर्स विषय का चयन करते हैं, जबकि कई वर्षों पहले 9वीं कक्षा से ही वाणिज्य शिक्षा शुरू हो जाती थी।

इससे विद्यार्थी सीनियर सैकंडरी तक कॉमर्स में करियर के विकल्पों से परिचित हो जाते थे और उच्च शिक्षा में स्पेशलाइजेशन कर सकते थे। स्कूल शिक्षा में कॉमर्स अभ्यर्थियों को केवल फर्स्ट ग्रेड शिक्षक बनने का विकल्प मिलता है। हालांकि, थर्ड ग्रेड में भी शिक्षक बन सकते हैं, लेकिन सैकंड ग्रेड में कॉमर्स विषय नहीं मिलता। जूनियर अकाउंटेंट परीक्षा के लिए साइंस-आर्ट्स के अभ्यर्थी भी पात्र होते हैं, जबकि यह क्षेत्र कॉमर्स का है फिर भी प्राथमिकता नहीं मिलती। वाणिज्य के प्रति रुझान बढ़ाने के लिए स्कूली शिक्षा में कक्षा-6 से ही वाणिज्य शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए।

प्राथमिक कक्षाओं से वाणिज्य पढ़ाने से न केवल विद्यार्थियों का रुझान बढ़ेगा, बल्कि शिक्षकों की आवश्यकता भी बढ़ेगी। इससे नए पद सृजित होंगे और आगे जाकर विद्यार्थी शिक्षक बनकर करियर बना सकेंगे। प्रतियोगी परीक्षा जैसे जूनियर अकाउंटेंट, अकाउंटेंट में कॉमर्स अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इन परीक्षाओं के सिलेबस में 80% प्रश्न वाणिज्य से संबंधित होने चाहिए। यूजीसी की नेट परीक्षा कॉमर्स से संबंधित अन्य विषयों में भी करवाई जानी चाहिए। कॉलेजों में अकाउंट्स, अर्थशास्त्र और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के शिक्षकों के पद पिछले चार-पांच सालों से रिक्त हैं।

जो शिक्षक कार्यरत हैं, उनमें से कुछ को गैर शैक्षणिक कार्यों में लगा रखा गया है, जिससे वे अपनी क्लास नहीं ले पाते। नतीजतन, पढ़ाई का नुकसान होता है। – अर्पित जैन, निवर्तमान छात्रसंघ अध्यक्ष, गवर्नमेंट कॉमर्स कॉलेज। कॉलेजों में पहले से ही विषय शिक्षकों की कमी है और प्रतियोगी परीक्षाओं का सेंटर भी बना दिया जाता है। इससे पढ़ाई ठप हो जाती है। क्योंकि, पेपर के समय महाविद्यालय में छुट्टियां होती हैं। वहीं, दो-दो सेशन के बच्चों को एक साथ बिठाकर पढ़ाना मजबूरी बन जाती है। – सतीश कुमार, बलवीर, छात्र कॉमर्स कॉलेज।

कॉमर्स कॉलेजों में फैकल्टी के पद और प्रथम वर्ष की सीटें आधी से ज्यादा खाली हैं। वर्तमान में आरपीएससी से शिक्षकों की चयन प्रक्रिया चल रही है। आर्ट्स-साइंस के शिक्षक मिल चुके हैं। जल्द ही कॉमर्स के भी मिलने की संभावना है। सरकार रिक्त पदों को भरने का पूरा प्रयास कर रही है। वहीं, विद्यार्थियों में रुझान बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में जॉब ओरिएंटेड टॉपिक्स को शामिल किया जा रहा है। – प्रो. विजय पंचौली, क्षेत्रीय सहायक निदेशक, आयुक्तालय कोटा

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