जयपुर। दिल की बीमारियों के इलाज में आधुनिक तकनीक लगातार नए विकल्प दे रही है। इन्हीं में से एक है वॉल्व-इन-वॉल्व प्रोसीजर, जिसमें पुराने या खराब हो चुके वॉल्व को दोबारा ओपन हार्ट सर्जरी किए बिना ही नया वॉल्व लगाया जा सकता है। इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस इंडिया वॉल्व्स 2025 के दूसरे दिन एक्सपर्ट्स ने दोबारा होने वाली टावी प्रोसीजर के बारे में जानकारी दी। कॉन्फ्रेंस के कोर्स डायरेक्टर डॉ. रविन्द्र सिंह राव ने बताया कि के दूसरे दिन विशेषज्ञों ने एक ही मरीज में दोबारा होने वाली टावी प्रोसीजर के बारे में विचार विमर्श किया।
इस दौरान वॉल्व इन वॉल्व केस, जिसमें कृत्रिम वॉल्व के अंदर एक और नया कृत्रिम वॉल्व इंप्लांट करने के बेहद जटिल केस के बारे में एक्सपर्ट्स ने अपनी राय दी। इस दौरान एक्सपर्ट्स ने 200 से अधिक केस प्रस्तुत किए। इसके अलावा कोरोनरी एंड टीएवीआर वर्कशॉप में डॉ. समीर कपाड़िया ने सीएडी इन टीएवीआर, डॉ. हेमल ने टीएवीआर प्रोसीजर के बाद कोरोनरी एक्सेस को लेकर बेस्ट प्रैक्टिस पर चर्चा की। डॉ. जी. सेंगोट्टुवेलु और डॉ. अशोक सेठ ने जटिल मामलों की प्रस्तुति दी, जिसका संचालन डॉ. एलन जजारियास और डॉ. रविन्द्र सिंह राव ने किया।
वैल्व-इन-वैल्व एंड री-डू टावर सत्र में डॉ. राज मक्कर ने री-डू प्रोसीजर्स पर नवीनतम तकनीकों की जानकारी दी। दूसरी बार ओपन सर्जरी की जरूरत नहीं, ट्रांस कैथेटर से ही इंप्लांट होगा कृत्रिम वॉल्व विशेषज्ञों ने बताया कि यह तकनीक उन मरीजों के लिए जीवनरक्षक है जिन्हें पहले से वॉल्व रिप्लेसमेंट हो चुका है लेकिन समय के साथ वह वॉल्व खराब होने लगा। अब तक ओपन सर्जरी द्वारा ही इसका इलाज संभव था।
ऐसे मामलों में दूसरी बड़ी सर्जरी का जोखिम ज्यादा होता है, जबकि वॉल्व-इन-वॉल्व प्रोसीजर में कैथेटर के जरिए नया वॉल्व पुराने वॉल्व के भीतर ही फिट कर दिया जाता है। इससे न केवल मरीज को कम दर्द और परेशानी होती है बल्कि रिकवरी भी तेजी से होती है। इस तकनीक से उन मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण जगाई है जिनके लिए पारंपरिक सर्जरी संभव नहीं थी। जटिल केसों को प्रस्तुत किया इस दौरान जटिल केस भी प्रस्तुत किए गए। डॉ. रविन्द्र राव ने बताया कि मुंबई के 70 वर्षीय मरीज, जिनका पाँच वर्ष पहले टावी किया गया था।
उसे बाद में सीने में दर्द और सांस फूलने की गंभीर समस्या होने लगी। जांच में उनकी धमनियों में कड़ा, कैल्शियम से भरा ब्लॉकेज पाया गया। पूर्व में की गई एंजियोप्लास्टी से राहत नहीं मिली थी। ऐसे में कृत्रिम वॉल्व के माध्यम से रोटा-एंजियोप्लास्टी कर ब्लॉकेज हटाया और एक नया स्टेंट लगाया। यह तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया सफल रही।


