उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ (उदयपुर) में शनिवार को महत्तरा साध्वी सुमंगला श्रीजी की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभा श्रीजी एवं साध्वी वैराग्यपूर्णाश्रीजी की पावन निश्रा में मौन एकादशी पर्व की आराधना हुई।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ में प्रफुल्लप्रभा श्रीजी साध्वीजी ने मौन एकादशी के महत्त्व को अपने प्रवचन के माध्यम से बताया कि मंगसर सुद एकादशी को मौन एकादशी का पर्व आता है। इस दिन तीनों चौबीस के तीर्थकरों के डेढ़ सौ कल्याणक हुए है।
इस भरत क्षेत्र के वर्तमान चौबीस श्री अरनाथजी की दीक्षा, श्री मल्लीनाथजी का जन्म, दीक्षा और केवल ज्ञान और श्री नेमिनाथजी को केवल ज्ञान इस तरह ये पांच कल्याणक हुए ।
इसी तरह पांच भरत और पांच ऐरावत इन दस क्षेत्रों में भी पांच पांच कल्याणक होने से कुल पचास कल्याणक हुए। गत चौबीसी में पचास कल्याणक हुए है और अनागत चौबीसी में पचास कल्याणक होंगे।
इस प्रकार इस दिन यानी आज के दिन कुल डेढ़ सौ कल्याणक हुए है। इस दिन उपवास करने वालों को डेढ़ सौ उपवास का फल मिलता है। ग्यारह वर्ष में यह तप पूर्ण होता है। इस दिन मुख्य रूप से मौन धारण करना होने से इसे मौन एकादशी कहते है।
मौन एकादशी की आराधना किसने की? इस पर सुव्रत सेठ की कथा के माध्यम से समझामा। प्रवचन के पश्चात महाल श्रावक-श्राविकामों ने ग्रहा-भक्ति के साथ देव वंदना की। डेढ़ सौमाला का जाप किया। एकादशी व्रत पर मौन रहने का महत्त्व है। यह पर्व पापों से से मुक्ति दिल्लामा है। कर्म का लग करने का यह मुख्य दिन है।
जो भी धार्मिक क्रिया करेंगे उसका डेढ़सौ गुणा फल प्राप्त होता है। जिन शासन रत्न. शान्त मूर्ति आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वरजी का आज मौन एकादशी के दिन जन्म होने से उनका 133वाँ जन्मदिन उनके गुणों को स्मरण करते हुए मनाया।
इस अवसर पर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या एवं अशोक जैन सहित सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।
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