नई दिल्ली। इस बार पद्मश्री सम्मान पाने वालों में हिंदी के प्रख्यात लेखक और कवि डॉ. रामदरश मिश्र भी शामिल हैं। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा होते ही सम्मानित विभूतियों को बधाइयां मिलने लगीं। चारों ओर उनके योगदान की चर्चाएं हो रही हैं।
मीडिया से बातचीत में डॉ. रामदरश मिश्र ने कहा कि उन्हें अपनी पुस्तकों और रचनाओं के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं, लेकिन पद्मश्री उनके लिए सबसे खास है। उन्होंने कहा, “यह सरकार द्वारा दिया गया सम्मान है और देश के शीर्ष नागरिक पुरस्कारों में से एक है, इसलिए यह मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण है।”
100 साल की उम्र में भी लेखन जारी
डॉ. रामदरश मिश्र बताते हैं कि वे 100 वर्ष से अधिक उम्र के हो चुके हैं, लेकिन आज भी कविताएं, ग़ज़लें और शेर लिखते रहते हैं। उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान अपनी हाल ही में लिखी एक रोमांटिक ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां भी सुनाईं:
“कुछ फूल, कुछ कांटे हमने आपस में बांटे,
यात्रा के हर मोड़ पर हमने एक-दूसरे का इंतजार किया है,
हाँ, हमने प्यार किया है।”
परिवार में खुशी की लहर
डॉ. रामदरश मिश्र के बेटे शशांक मिश्र का कहना है कि उनके पिता को जितनी बधाइयां मिली हैं, उससे कहीं ज्यादा बधाइयां उन्हें मिल रही हैं। शशांक ने बताया कि “मेरे पिताजी बहुत सीधे स्वभाव के हैं। उन्होंने कभी किसी चीज की लालसा नहीं रखी। जो मिला, उसमें हमेशा संतुष्ट रहे।” उन्होंने अपने पिता को पद्मश्री सम्मान मिलने पर सरकार का आभार व्यक्त किया।
डॉ. रामदरश मिश्र का साहित्यिक योगदान
डॉ. रामदरश मिश्र को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। वे दिल्ली के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार हैं। उन्होंने अब तक 32 कविता संग्रह, 30 लघु-कहानी संग्रह, 15 उपन्यास, 15 साहित्यिक आलोचनाओं की पुस्तकें, 4 निबंध संग्रह, यात्रा वृत्तांत और कई संस्मरण लिखे हैं।
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