बाघिन आरवीटी-8 ने कालदा के जंगलों की ओर किया रुख

Tina Chouhan

रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व से निकली युवा बाघिन आरवीटी-8 अब बूंदी शहर से होते हुए कालदा के दुर्गम जंगलों की ओर पहुंच गई है। यह पहली बार है जब बाघिन ने हाइवे पार कर कालदा वन क्षेत्र का रुख किया है। वन विभाग ने तत्काल इलाके में निगरानी बढ़ा दी है और स्थानीय लोगों से जंगल में नहीं जाने की अपील की है। करीब दो माह पहले सॉफ्ट एनक्लोजर से मुक्त हुई यह बाघिन बीते एक महीने से बूंदी शहर के आसपास के जंगलों में रह रही थी।

अब इसके कालंदा की ओर बढ़ने से संभावना है कि यह यहां अपनी टेरिटरी स्थापित करे। 300 बीघा क्षेत्र में घास के मैदान विकसित: वन विभाग ने कालंदा माताजी के 300 बीघा क्षेत्र में सिल्वी पॉश्चर पद्धति से घास के मैदान विकसित किए हैं, जिससे शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या में वृद्धि हुई है। विभाग जल्द ही यहां नए ट्रेकिंग रूट और ग्रासलैंड विकसित करने की योजना भी बना रहा है। बाघों के लिए उपयुक्त आवास है कालंदा: कालंदा वन क्षेत्र 380 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।

यहां सालभर जल उपलब्धता रहने के कारण यह इलाका वन्यजीवों के लिए प्रमुख आश्रय-स्थल है। पहाड़ी चोटियों तक पर प्राकृतिक जल स्रोत हैं जो भीषण गर्मी और अकाल में भी सूखते नहीं। इन्हीं कारणों से कालंदा सदियों से बाघों के पसंदीदा आवास रहे हैं। यहां कालदा माताजी, देवझर महादेव, दुर्वासा महादेव, भीमलत महादेव और कई अन्य जलयुक्त धार्मिक स्थल हैं, जो वन्यजीवों को स्थायी जीवनाधार देते हैं। अन्य वन्यजीवों की भी बढ़ी संख्या: बूंदी और भीलवाड़ा जिलों के इन दुर्गम जंगलों में भालू, पेंथर और अन्य वन्यजीवों की संख्या भी बढ़ी है।

आने वाले समय में कालदां और बांका वन खंड बाघों के सुरक्षित आवास के रूप में और मजबूत बनेंगे।

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