संभल: समाजवादी पार्टी के नवनिर्वाचित सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ को लेकर चल रहे विवाद पर अपना रुख साफ कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह वंदे मातरम नहीं गाते हैं और न ही किसी को इसे गाने के लिए मजबूर किया जा सकता है। बर्क ने इसे अपने धार्मिक विश्वासों और संवैधानिक अधिकारों का मामला बताया। यह बयान उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान दिया।
जियाउर्रहमान ने अपने दादा, मरहूम सांसद शफीकुर्रहमान बर्क की विरासत का जिक्र करते हुए कहा कि उनके दादा ने भी हमेशा वंदे मातरम का विरोध किया था और वह भी उसी रास्ते पर चलेंगे। मजहब और संविधान का हवाला सांसद ने अपने फैसले के पीछे धार्मिक कारणों को मुख्य वजह बताया। उन्होंने कहा कि इस्लाम सिर्फ एक अल्लाह की इबादत की इजाजत देता है और किसी अन्य स्थान या व्यक्ति को सजदा करने की अनुमति नहीं देता। “वंदे मातरम में ऐसे शब्द हैं जो हमारे मजहब के खिलाफ हैं।
हम एक अल्लाह की इबादत करते हैं, किसी और जगह को सजदा नहीं कर सकते। यह हमारे मजहब और संवैधानिक अधिकार का हिस्सा है।” — जियाउर्रहमान बर्क, सपा सांसद बर्क ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि किसी भी नागरिक को वंदे मातरम गाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रगान का सम्मान, राष्ट्रीय गीत पर आपत्ति जब उनसे पूछा गया कि जब राष्ट्रगान गाया जा सकता है तो राष्ट्रीय गीत क्यों नहीं, तो उन्होंने दोनों के शब्दों में अंतर स्पष्ट किया।
उन्होंने कहा, “हम जन गण मन का सम्मान करते हैं और उसे खड़े होकर दिल से गाते हैं, क्योंकि वह हमारे देश का राष्ट्रीय गान है। राष्ट्रीय गान के अल्फाज में कोई आपत्तिजनक बात नहीं है, इसलिए उसे स्कूलों और मदरसों में गाया जाता है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि वंदे मातरम न गाने से उनकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। “इस बात से मेरी देशभक्ति पर कोई उंगली नहीं उठा सकता। हमारे बुजुर्गों ने इस देश के लिए कुर्बानियां दी हैं।
पूरी दुनिया हमारे इतिहास को जानती है।” — जियाउर्रहमान बर्क बर्क का यह बयान वंदे मातरम को लेकर देश में समय-समय पर होने वाली राजनीतिक और सामाजिक बहस को एक बार फिर सामने लाता है।

